श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “वात और बात”।)  

? अभी अभी # 112 ⇒ वात और बात? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

 

शरीर का अपना गुण धर्म होता है। आरोग्य हेतु त्रिदोष अर्थात् कफ, पित्त और वात के निवारण हेतु औषधियों का सेवन भी किया जाता है। वात को एक प्रमुख विकार माना गया है। त्रिफला इसमें बड़ा गुणकारी सिद्ध हुआ है।

सुबह सुबह विकार की चर्चा करना और कुछ नहीं आपका हाजमा ठीक रहे, बस इतनी ही कामना करना है। हम जानते हैं कुछ लोगों का हाजमा इतना अच्छा है कि उन्हें कंकर पत्थर तो क्या, बड़े बड़े पुल और अस्पताल भी खिलाओ तो भी उनके पेट में दर्द नहीं होता। आसान शब्दावली में इसे रिश्वत खाना कहते हैं। ।

लेकिन हम आज भ्रष्टाचार नहीं, सामान्य शिष्टाचार की बात कर रहे हैं। जो लोग इतने शरीफ हैं कि एक मूली का परांठा तक खाते हैं तो लोग या तो नाक पर हाथ रख लेते हैं अथवा रूमाल तलाशने लग जाते हैं। एकाएक ओज़ोन की परत कांप जाती है और पर्यावरण अशुद्ध हो जाता है। बस यही, वात दोष अथवा वायु विकार है।

वात विकार की ही तरह कुछ लोगों के पेट में बात भी नहीं पचती। कल रात सहेली ने एक बात बताई और संतोषी माता की कसम दिलवाई कि यह बात किसी को बताना मत, बस, तब से ही पेट में गुड़गुड़ हो रही है। उधर रेडियो पर लता का यह गीत बज रहा है ;

तुझे दिल की बात बता दूं

नहीं नहीं, किसी को बता देगी तू

कहानी बना देगी तू। ।

पहले कसम खाना और उसके बाद किसी बात को पचाना क्या यह अपने आप पर दोहरा अत्याचार नहीं हुआ। वात और बात दोनों ही ऐसे विकार हैं, जिनका निदान होना अत्यंत आवश्यक है। यह शारीरिक और मानसिक रोगों की जड़ है। यह एक गंभीर सामाजिक समस्या है। इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।

किसी आवश्यक बात को छुपाना, दर्द को छुपाने से कम नहीं होता। भगवान ने भी हमें कान तो दो दिए हैं और मुंह केवल एक। हमारे कान हमेशा चौकन्ने रहते हैं, सब कुछ सुन लेते हैं। ईश्वर ने पेट भोजन पचाने के लिए दिया है, बातों को पचाने के लिए नहीं। क्या यह हमारे पाचन तंत्र पर अत्याचार नहीं। वात और बात दोनों का बाहर निकलना तन और मन दोनों के लिए स्वास्थ्यवर्धक है। ।

ईश्वर बड़ा दयालु है। उसने अगर सुनने के लिए दो द्वार दिए हैं, दांया और बांया कान तो खाने और बात करने के लिए मुख भी बनाया है। जो खाया उसे पचाएं, जो ज्ञान की बातें सुनी, उन्हें भी गुनें, हजम करें। इंसान केवल खाना ही नहीं खाता। और भी बहुत कुछ खाता पीता है। कभी गम भी खाता है, कड़वी बातें भी पचा जाता है, अपमान के घूंट भी पानी समझकर पी लेता है। सावन के महीने में, जब आग सी सीने में, लगती है तो पी भी लेता है, दो चार घड़ी जी लेता है।

वही खाएं, जो हजम हो। वही बात मन में रखें, जिसमें अपना हित हो। पेट और मन को हल्का रखना बहुत जरूरी है। वात और बात के भी दो अलग अलग रास्ते हैं। लेकिन यह संसार मीठा ही पसंद करता है। इसे न तो कड़वे लोग पसंद हैं और न ही वात रोगी। आप मीठा बोल तो सकते हैं लेकिन वात तो वात है। सबकी वाट लगा देता है। आप कितने भी स्मार्ट हों, एक फार्ट सारा खेल बिगाड़ देता है। ।

कुछ तो लोग कहेंगे। लोगों का काम है कहना। हम तो कह के रहेंगे जो हमें कहना। कल ही त्रिफला खाया है। जरा दूर ही रहना। फिर मत कहना, बताया नहीं, जताया नहीं, आगाह नहीं किया। सुप्रभात ..!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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