श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “घड़ियाल/मगरमच्छ”।)  

? अभी अभी # 108 ⇒ घड़ियाल/मगरमच्छ? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

घड़ियाल और मगरमच्छ का मामला कौआ कोयल जैसा नहीं है। दोनों ही जलचर हैं, हिंसक जीव हैं, दोनों की ही मोटी चमड़ी है, और कथित रूप से दोनों ही आंसू बहाते हैं। इनके आंसुओं पर ना तो कोई शोध हुआ है और ना ही इनकी आंसू बहाता हुई कोई तस्वीर, हमारे नेताओं की तरह, कभी वायरल हुई है।

नर और वानर की तरह इनकी भी शारीरिक रचना में थोड़ा अंतर होने के कारण अगर कोई घड़ियाल है तो कोई मगरमच्छ। हम तो जब रोजाना मंदिर जाते हैं तो भव्य आरती के वक्त घंटा और घड़ियाल में भी भेद नहीं कर पाते। कोरोना काल में तो जिसके जो हाथ में आया, उसने उसे ही ईमानदारी से, कोरोना वॉरियर्स के सम्मान में बजाया। दूध सांची का हो या अमूल का, टूथपेस्ट पतंजलि का हो अथवा कोलगेट का, दोनों में ज्यादा अंतर नहीं। ।

एक कथा के अनुसार जब एक हाथी जल पीने तालाब किनारे गया, तो किसी मगरमच्छ ने उसका पांव पकड़ लिया और उसे अपना ग्रास बनाने चला। हाथी ने बहते हुए एक कमल के फूल को अपनी सूंड में उठाया और अपनी प्राण रक्षा के लिए हरि हरि पुकारा। विष्णु भगवान ने तत्काल प्रकट होकर उस हाथी के प्राण बचाए। इस कथा में भी अगर किसी के आंसू बहे होंगे तो हाथी के ही बहे होंगे, मगरमच्छ के नहीं। मुफ्त में ही किसी को बदनाम करने का हमारे यहां चलन बहुत पुराना है।

आंसू बहाना औरतों का काम है। भक्त के आंसू तो बारहमासी सावन भादो के आंसू होते हैं। भक्ति भाव में अश्रुओं की धारा सतत बहती रहती है। जंगली जानवरों को तो सुख दुख से परे ही होना पड़ता है, वहां तो पल पल पर संघर्ष है और एक जीव का जन्म ही इसलिए हुआ है कि वह किसी अन्य जीव का भोजन बने। ईश्वर दयालु है, जो उन्हें इन संघर्ष के क्षणों में मनुष्य के समान मानसिक आघातों से बचाकर रखता है। ।

लेकिन फिर भी जब सृजन का प्रश्न आता है, तो प्रजनन के वक्त सृष्टि के हर प्राणी में संवेदना जाग उठती है। मादा कछुआ हो अथवा मगरमच्छ, समुद्र की रेत के किनारे जब अपने बच्चों को जन्म देती है, तब वह साक्षात जननी बन जाती है। सभी हिंसक जीव इन सृजन के पलों में कहीं से मदरकेयर का पाठ पढ़कर आते हैं, हर मां अपने बच्चे को छाती से चिपकाए रखती है, जान पर खेलकर अपने बच्चों की रक्षा करती है।

ऐसे कई अवसरों पर हमें तो इन सभी हिंस पशु -पक्षी और जानवरों में मानवीय गुणों के दर्शन हो जाते हैं, लेकिन केवल इंसान ही ऐसा प्राणी है जो अपनी इंसानियत छोड़ हैवानियत पर उतर आता है। ।

झूठे मगरमच्छ अथवा घड़ियाली आंसुओं से हमें क्या लेना देना। उसके आंसुओं से आपका वास्ता तो तब पड़ेगा जब देवताओं को दुर्लभ इस मानवीय देह की जगह आपको भी इन जानवरों की देह में जन्म लेना पड़े।

चौरासी का चक्कर जो काट रहा है, और अपनी भोग योनि के वशीभूत असहाय है, अशक्त है, उसके प्रति हमारे मन में दया का भाव हो, हम संवेदनशील हों, हमारे छल कपट और बनावटी आंसुओं की तुलना कम से कम उनके साथ तो ना करें।

मनुष्य के अलावा कभी किसी अन्य प्राणी ने प्रकृति के नियमों का उल्लंघन नहीं किया और न ही कभी अपनी सीमा लांघी। केवल मनुष्य ही अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति के साथ खिलवाड़ करता है, अपनी मानवीय कमजोरियों और दोषों पर उनका कॉपीराइट घोषित करता है। आदमी का जहर और एक कपटी नेता के बनावटी आंसुओं की तुलना किसी घड़ियाल अथवा मगरमच्छ से नहीं की जा सकती। अब इन झूठे और बनावटी आंसुओं पर इन पाखंडियों का ही कॉपीराइट है किसी मूक और असहाय प्राणी का नहीं।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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