श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “चांद के बहाने “।)  

? अभी अभी # 107 ⇒ चांद के बहाने ? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

विज्ञान प्रयोग और परीक्षण में विश्वास करता है, उसकी अपनी प्रयोगशाला होती है। वह हवा में बातें नहीं करता, अंतरिक्ष की बात करता है। बड़े बड़े यंत्रों से वह ना केवल उनकी दूरी नापता है, उन्हें तनिक करीब भी ले आता है। हमारे ऑडिटोरियम की तरह उसका भी एक प्लैनिटोरियम होता है।

इधर कोई प्रेमी शयन कक्ष में बैठा बैठा गुनगुना रहा है, चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो, और उधर भारत का चन्द्रयान सफलतापूर्वक चंद्रमा की ओर प्रस्थान कर रहा है। विज्ञान अफसाने में नहीं, हकीकत में यकीन करता है। एक कवि अथवा शायर भले ही श्रोताओं का दिल अपनी शायरी से जीत ले, विज्ञान चांद पर तिरंगा फहराने में यकीन रखता है। ।

हमारा अस्तित्व सूरज से है। विज्ञान भी यह भली भांति जानता है, इसलिए उसका मंगल इसी में है कि भले ही वह मंगल ग्रह पर परीक्षण के लिए मंगल यान भेज दे, लेकिन सूरज से तो दूर से ही बात करनी होगी। क्योंकि आपके पास जो आएगा, वो जल जाएगा। हम भी इसीलिए सुबह सवेरे सूर्य नमस्कार करते हैं, और उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं।

चांद का मामला कुछ अलग है। इसीलिए मनुष्य ने चांद पर कदम तो रख लिया लेकिन सूर्य को दूर से ही राम राम कह दिया। बच्चों ने अगर चांद को चंदामामा माना है, तो क्या शायर, क्या प्रेमी और क्या हमारी भारतीय नारी, सारे व्रत उपवास, सभी चांद के इर्द गिर्द ही नजर आते हैं। ।

एक प्रेमिका अपने प्रेमी से कहती है, चांद को देखो जी ! ऐसा क्या है चांद में, तू अकेली ही चांद को देख लेती। चांद तो महज बहाना है। उन्हें चांदनी रात चाहिए, और एकांत चाहिए। चांद भी कम नहीं। चांद तकता है इधर, आओ कहीं छुप जाएं। चांद समझदार है, इशारा समझ जाता है, खुद ही बादलों में छुप जाता है।

कोई आम चतुर्थी हो अथवा विशिष्ट करवा चौथ, चांद के भाव देखिए आप। आसमान में तो वैसे ही रहते हैं, फिर भी नजर नहीं आते। हर सुहागन सज धजकर, सोलह श्रृंगार कर, पहले चांद को देखेगी, फिर अपने चांद को देखकर व्रत तोड़ेगी। ।

कल से अगर लोग चांद पर बसने लगे तो वे चांद कैसे देखेंगे, किसे देखकर व्रत तोड़ेंगे। शायद तब वे या सूर्य देवता के लिए व्रत उपवास रखें, या फिर नीचे उनकी धरती माता के लिए। मां अपने बेटे की बला टालने के लिए, उसे बुरी नजर से बचाने के लिए, व्रत उपवास रखती है, लेकिन कोई बेटा कभी अपनी मां के लिए व्रत उपवास नहीं रखता, क्योंकि मां को कभी किसी की नजर ही नहीं लगती।

होंगे सितारों से आगे और भी जहान, दूर के ढोल सुहाने, हमारी धरती पर ही वास्तविक स्वर्ग है, और उसमें भी सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा।

चांद सितारे हमें प्यारे हैं, खुला आसमान ही हमारी छत है। आसमान में तो एक ही चांद है, हमारी धरती पर तो सभी चांद से चेहरे हैं ;

तुझे चांद के बहाने देखूं

तू छत पर आ जा गोरिये

जिन्द मोरिये …!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest