श्री प्रतुल श्रीवास्तव
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक श्री प्रतुल श्रीवास्तव, भाषा विज्ञान एवं बुन्देली लोक साहित्य के मूर्धन्य विद्वान, शिक्षाविद् स्व.डॉ.पूरनचंद श्रीवास्तव के यशस्वी पुत्र हैं। हिंदी साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रतुल श्रीवास्तव का नाम जाना पहचाना है। इन्होंने दैनिक हितवाद, ज्ञानयुग प्रभात, नवभारत, देशबंधु, स्वतंत्रमत, हरिभूमि एवं पीपुल्स समाचार पत्रों के संपादकीय विभाग में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया। साहित्यिक पत्रिका “अनुमेहा” के प्रधान संपादक के रूप में इन्होंने उसे हिंदी साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान दी। आपके सैकड़ों लेख एवं व्यंग्य देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आपके द्वारा रचित अनेक देवी स्तुतियाँ एवं प्रेम गीत भी चर्चित हैं। नागपुर, भोपाल एवं जबलपुर आकाशवाणी ने विभिन्न विषयों पर आपकी दर्जनों वार्ताओं का प्रसारण किया। प्रतुल जी ने भगवान रजनीश ‘ओशो’ एवं महर्षि महेश योगी सहित अनेक विभूतियों एवं समस्याओं पर डाक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण भी किया। आपकी सहज-सरल चुटीली शैली पाठकों को उनकी रचनाएं एक ही बैठक में पढ़ने के लिए बाध्य करती हैं।
प्रकाशित पुस्तकें –ο यादों का मायाजाल ο अलसेट (हास्य-व्यंग्य) ο आखिरी कोना (हास्य-व्यंग्य) ο तिरछी नज़र (हास्य-व्यंग्य) ο मौन
आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय व्यंग्य “विदेशी तोता और देशी मेम”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ प्रतुल साहित्य # 7 ☆
☆ व्यंग्य ☆ “विदेशी तोता और देशी मेम” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆
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कहते हैं कानून अंधा होता है। जैसे न्याय की देवी की आंखों में पट्टी बंधी रहती है उसी तरह प्रेम में पड़े व्यक्ति की आँखों पर भी प्रेम की पट्टी चढ़ जाती है। उसे कुछ दिखाई नहीं देता, अच्छा-बुरा समझने की शक्ति समाप्त हो जाती है। इसलिये तो कहा गया है कि “दिल लगा गधी से तो परी किस काम की”। इस मामले में एक फिल्मी गाना बिल्कुल सही मालुम होता है- “दिल तो है दिल, दिल का एतबार क्या कीजे। हो गया है किसी से प्यार क्या कीजे।”
अब देखिए न कितने उदाहरण सामने हैं-एक से एक खूबसूरत पढ़ी लिखी मैडमें अपने पतियों से ज्यादा प्यार अपने कुत्तों-बिल्लियों से करती हैं। उन्हें अपनी छाती से चिपकाए घूमती हैं। प्रेम का एक ऐसा ही मामला हाल ही में सामने आया है। किसी शहर के बड़े हार्ट सर्जन की डॉ पत्नी का तोता लापता हो गया है। तोते के गम में पत्नी ने खाना-पीना छोड़ दिया है। अब चूंकि “दिल का हाल सुने दिल वाला”, दिल के डॉक्टर ने तोता प्रेम में डूबी अपनी पत्नी के दिल की नाजुक स्थिति भांप ली। उन्होंने अखबार के फ्रंट पेज पर तोता गुमने का विज्ञापन छपवाया, पोस्टर-पैम्फलेट बंटवाये, तोता ढूंढ कर लाने वाले के लिये एक लाख रुपये इनाम की घोषणा कर डाली। बताया गया कि डॉक्टर ने अपनी पत्नी के लिये ग्रे कलर के दो अफ्रीकन तोते 80 हजार रुपये में खरीदे थे जिनमें से कोको नाम के तोते को जब डॉक्टर की पत्नी सेव खिला रही थी तब वो उसके प्रेम को ठुकरा कर उसे विरह की अग्नि में जलता छोड़कर उड़ गया। डॉक्टर की पत्नी रो-रो कर बेहाल है “तुम न जाने किस जहाँ में खो गए, हम भारी दुनिया में तन्हा हो गए।” क्षेत्र में बात का बतंगड़ बन रहा है। डॉक्टर साहब परेशान हैं कि यदि तोता न मिला तो वे प्यार में तारे तोड़ कर लाने वालों से भरे इस संसार में अपनी इज्जत कैसे बचाएंगे ? इस समय पूरे शहरवासी एक लाख रुपये इनाम के चक्कर में तोता ढूंढने में लगे हैं। तोता मिले न मिले लेकिन यह तोता अनेक प्रश्न छोड़ गया है।
देश में कुछ दुधारू व अन्य चंद पशु-पक्षियों के अतिरिक्त सभी की खरीद-फरोख्त और उन्हें बंदी बना कर रखने, उनसे काम लेने पर सख्त रोक है। देश में पक्षी बाजार तो अब देखने ही नहीं मिलते। यदि कोई पक्षी बेचता हुआ दिख जाता है तो सरकारी विभाग के पहले जागरूक नागरिक ही उसे घेर कर पक्षियों को आजाद कर देते हैं। इसी कानून के चलते नागपंचमी उत्सव समाप्ति पर है। पशु-पक्षी कलाकारों से विहीन होकर सर्कस लगभग बंद हो चुके हैं। हाँ, इस कानून से नगरों, गांवों में आवारा कुत्तों-सुअरों की संख्या जरूर बढ़ती जा रही है। खैर, सवाल उठता है कि डॉक्टर अस्सी हजार रुपये के अफ्रीकन तोते कहाँ से ले आए ? क्या उन्होंने इन्हें खरीदने और पालने की अनुमति ली थी ? जरा सोचिए जो डॉक्टर अस्सी हजार के तोते ले सकता है और एक तोते को खोजने के लिये एक लाख रुपये का इनाम दे सकता है उसके पास कितना माल होगा ? इस तोता मालिक हार्ट सर्जन ने न सिर्फ अपनी वरन तमाम स्वास्थ्य के सौदागर डॉक्टरों की आर्थिक हैसियत देश के सामने उजागर कर दी है। शायद तोता पालक डॉक्टर और डाक्टरनी यह नहीं जानते कि तोता, कबूतर या तीतर जैसा विश्वसनीय नहीं होता और फिर उनका तोता तो विदेशी नस्ल का था। आम धारणा और विश्वास है कि विदेशी नस्ल भले ही अच्छी दिखे पर विश्वसनीय नहीं होती। पशुओं की बात तो छोड़ें, देश में तो जब-तब विदेशी नस्ल के लोगों तक पर विश्वसनीयता और समर्पण संबंधी प्रश्न उठते रहते हैं यहां तक कि विदेशी से देशी नस्ल के क्रॉस पर भी देशवासियों को भरोसा नहीं है। अब जब समाचार पत्रों के माध्यम से डॉक्टर का तोता और उसकी आर्थिक स्थिति सार्वजनिक हो चुकी है तब अवश्य ही इस पर पशु-पक्षी सुरक्षा-संरक्षण विभाग और इनकम टैक्स विभाग का ध्यान भी आकर्षित हुआ होगा। यह बात अलग है कि ये सरकारी विभाग सकारण अथवा अकारण मौन रहें। हमारे देश में कुछ भी असंभव नहीं।
© श्री प्रतुल श्रीवास्तव
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