सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता ☆ “वापसी…” ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

बाँस की डलिया में

ओस भीगे फूल

सुई धागे में पिरोकर

भगवान की माला

बनाना

फूलों वाले पौधों को

सींचना

 

गर्मी की छुट्टियों में

स्लेट पर कलम से

रंगोलियां रचना

ड्राइंग बुक में सूरज नदी पहाड़

जंगल बनाकर

स्वयं को

पिकासो समझना

 

आम अमरूद जामुन के

 पेड़ों पर

ऊँचे ऊँचे

बहुत ऊँचे चढ़ जाना

बंदर या गिल्लू की तरह

 

बारिश की बूँदें जीभ पर

 झेलकर चखना

छोटे छोटे

ओले चुनना

 

रसोई में मदद करने की बात

सुनकर

 सीधे मना कर देना

माँ !

जिन्दगी इतनी सरल

क्यों नहीं होती!

वक्त

पीछे मुड़ना क्यों नहीं जानता ?

और तुम्हें लौटा लाना

मेरे पास।। 

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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