श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 131 ☆ देश-परदेश – जिस लाहौर नही देख्या ओ जम्याइ नई ☆ श्री राकेश कुमार ☆
हमने इस नाम से खेले जा रहे लाहौर में जन्में प्रसिद्ध नाटककार असगर वजाहत के प्रसिद्ध नाटक “जिस लाहौर नही देख्या ओ जम्याइ नई” के बारे में बहुत कुछ सुना हैं। ये नाटक जिन लाहौर नहीं वेख्या… शीर्षक से वर्षों से विभिन्न शहरों के रंगमंचों की शोभा बढ़ाता है। पंजाबी भाषा में लाहौर शहर की प्रसिद्धि की गहराई बताने के लिए कहावत का रूप ले चुका है। “जिन लाहौर नहीं वेख्या…वो जन्मया ही नहीं” अर्थात “जिसने लाहौर नहीं देखा, उसका जन्म ही नहीं हुआ”
देश के विभाजन से पूर्व लाहौर शहर को पूर्व का पेरिस कहा जाता था। फैशन की दुनिया में लाहौर की प्रसिद्धि अभी भी कायम है।
पवित्र शहर अमृतसर से करीब तीस मील की दूरी पर स्थित लाहौर आज भी उन लोगों के लिए अभिमान का प्रतीक है, जो विभाजन की वेदना में अपना सब कुछ छोड़ कर भारत में आ गए थे।
दिल्ली शहर हो या राजस्थान, एम पी, यू पी जैसे प्रदेश जहां शरणार्थी बन कर पंजाबी परिवार अपने बल बूते/ पुरुषार्थ से वापिस अपने मुकाम हासिल कर चुके है। बहुत सारे कपड़े, श्रृंगार, ड्राई फ्रूट आदि की दुकानों के नाम के साथ लाहौर नाम जुड़ा हुआ मिलता है। इसी प्रकार से हैराबाद की प्रसिद्ध “कराची बेकरी” का नाम भी पूरे देश में प्रसिद्ध है।
इन दुकानदारों को अभी भी लोग “लाहौरी शाह (सेठ)” के नाम से जानते हैं। पाकिस्तान का फिल्मी उद्योग भी लाहौर शहर में स्थित है, इसलिए इसको “लॉलीवुड” भी कहा जाता है।
65 के युद्ध में भारतीय सेना ने लाहौर से भी पाकिस्तान में प्रवेश किया था, लेकिन करीब दस मील घुसने के बाद मानव निर्मित “इच्छोगिल नहर” बाधा बन गई थी।
अमृतसर के कुछ लोग 65 के सीज़ फायर के समय भारतीय सैनिकों के खाने के लिए खीर बना कर ले गए थे। सैनिकों ने भी स्वादिष्ट खीर का सेवन कर खुश होकर भारतीय नागरिकों को लाहौर में पाकिस्तानी नागरिकों की भैंसे, गाय आदि घरेलू पशुओं को ले जाने के किए कहा, ताकि उनको चारा पानी मिलता रहे। हमारे देश के नागरिक भी मुफ्त में मिले हुए जानवरों को अपने घर ले आए थे।
पुरानी कहावत है, “कर भला हो भला” ये ही सब हमारे देशवासियों के साथ हुआ था। आप भी चाहे तो हमारे इस लेख पर ताली बजा कर अपना भी भला करवा सकते हैं।
© श्री राकेश कुमार
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