श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा।)
यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-२५ ☆ श्री सुरेश पटवा
01 अक्टूबर 2023 को हमारे दल की वापिसी यात्रा शुरू हुई। हमको एहोल और बादामी गुफाओं के दर्शन करके बादामी स्थित आनंदनगर की एक होटल में एक रात गुज़ारना थी। ताकि अगले दिन हुबली एयरपोर्ट से सुबह की दिल्ली फ्लाइट पकड़ी जा सके। दिल्ली एयरपोर्ट पर रात्रि विश्राम करके शाम को भोपाल फ्लाइट पकड़नी थी। हम लोग हुबली आते समय सीधे कोप्पल के रास्ते से से हॉस्पेट पहुँचे थे। वापिसी में हंगुण्ड हुए एहोल पहुंचना था। होटल से नाश्ता करके चले।
साथियों को बताया कि कार्बन डेटिंग पद्धति से यह पता चला है कि दक्षिण भारत में ईसा पूर्व 8000 से मानव बस्तियाँ रही हैं। लगभग 1000 ईसा पूर्व से लौह युग का सूत्रपात हुआ। मालाबार और तमिल लोग प्राचीन काल में यूनान और रोम से व्यापार किया करते थे। वे रोम, यूनान, चीन, अरब, यहूदी आदि लोगों के सम्पर्क में थे। प्राचीन दक्षिण भारत में विभिन्न समयों तथा क्षेत्रों में विभिन्न शासकों तथा राजवंशों ने राज किया। सातवाहन, चेर, चोल, पांड्य, चालुक्य, पल्लव, होयसल, राष्ट्रकूट आदि ऐसे ही कुछ राजवंश थे। इनमें से चालुक्य राजाओं के शासन के दौरान भूतनाथ गुफाओं में प्रश्तर मूर्तियों का निर्माण हुआ।
अब यात्रा उत्तर दिशा में कोल्हापुर जाने वाली सड़क पर शुरू होनी है। हॉस्पेट से दस किलोमीटर चले थे और तुंगभद्रा नदी पर बना बांध दिखने लगा। दूर से ही दर्शन करके आगे बढ़ गए। करीब 100 किलोमीटर चलकर हंगुण्ड पहुँचे। तब तक लंच का समय हो चुका था।
हंगुण्ड के होटल मयूर यात्री निवास रेस्टोरेंट में दोपहर का भोजन निपटा कर प्रसिद्ध ऐहोल शिलालेख देखा।
यह रविकीर्ति का ऐहोल शिलालेख है, जिसे कभी-कभी पुलकेशिन द्वितीय का ऐहोल शिलालेख भी कहा जाता है। यह शिलालेख ऐहोल शहर के दुर्गा मंदिर और पुरातात्विक संग्रहालय से लगभग 600 मीटर दूर एहोल शिलालेख मेगुटी जैन मंदिर की पूर्वी दीवार पर पाया गया है। एहोल – जिसे ऐतिहासिक ग्रंथों में अय्यावोल या आर्यपुरा के रूप में भी जाना जाता है – 540 ईस्वी में स्थापित पश्चिमी चालुक्य वंश की मूल राजधानी थी, उनके बाद 7वीं शताब्दी में वातापी की राजधानी रहा।
शिलालेख में पुरानी चालुक्य लिपि में संस्कृत की 19 पंक्तियाँ हैं। यह मेगुटी मंदिर की पूर्वी बाहरी दीवार पर स्थापित एक पत्थर पर अंकित है, जिसमें लगभग 4.75 फीट x 2 फीट की सतह पर पाठ लिखा हुआ है। अक्षरों की ऊंचाई 0.5 से 0.62 इंच के बीच है। शैलीगत अंतर से पता चलता है कि 18वीं और 19वीं पंक्तियाँ बाद में जोड़े गए अपभ्रंश हैं, और रविकीर्ति की नहीं हैं।
शिलालेख एक प्रशस्ति है। यह पौराणिक कथाएँ बुनता है और अतिशयोक्ति पूर्ण है। लेखक ने अपने संरक्षक पुलकेशिन द्वितीय की तुलना किंवदंतियों से की है, और खुद की तुलना कालिदास और भारवि जैसे कुछ महानतम संस्कृत कवियों से की है – जो हिंदू परंपरा में पूजनीय हैं। फिर भी, यह शिलालेख कालिदास के प्रभावशाली कार्यों से वाक्यांशों को उधार लेता प्रतीत होता है।
ऐहोल के बाद अगला पड़ाव बादामी था। बादामी बागलकोट जिला में पहले वातापी के नाम से जाना जाता था, वर्तमान में एक तालुक मुख्यालय है। यह 540 से 757 तक बादामी चालुक्यों की शाही राजधानी रहा। बादामी गुफा मंदिर चट्टानों को काटकर बनाए गए स्मारकों के साथ-साथ भूतनाथ मंदिर, बादामी शिवालय और जम्बुलिंगेश्वर मंदिर जैसे संरचनात्मक मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। यह अगस्त्य झील के चारों ओर ऊबड़-खाबड़, लाल बलुआ पत्थर की चट्टान के नीचे एक खड्ड में स्थित है।
बादामी शहर महाकाव्यों की अगस्त्य कथा से जुड़ा हुआ है। महाभारत में, असुर वातापी एक बकरी बन जाता था, जिसे उसका भाई इल्वला पकाता था और मेहमान को खिलाता था। इसके बाद, इल्वला उसे पुकारता था, वातापी पीड़ित के अंदर से पेट फाड़ कर बाहर निकलता था। जिससे पीड़ित की मौत हो जाती थी। जब ऋषि अगस्त्य आए, तो इल्वला उन्हें बकरी भोज प्रदान करता है। अगस्त्य भोजन को पचाकर वातापी को मार देते हैं। इस प्रकार अगस्त्य ने वातापि और इल्वला को मार डाला। ऐसा माना जाता है कि यह किंवदंती बादामी के पास घटित हुई थी, इसलिए इसका नाम वातापी और अगस्त्य झील पड़ा।
चालुक्यों के प्रारंभिक शासक पुलकेशिन प्रथम को आम तौर पर 540 में बादामी चालुक्य राजवंश की स्थापना करने वाला माना जाता है। बादामी में एक शिलाखंड पर उत्कीर्ण इस राजा के एक शिलालेख में 544 में ‘वातापी’ के ऊपर पहाड़ी की किलेबंदी का रिकॉर्ड दर्ज है। क्योंकि बादामी तीन तरफ से ऊबड़-खाबड़ बलुआ पत्थर की चट्टानों से सुरक्षित है। इसीलिए उनकी राजधानी के लिए यह स्थान संभवतः रणनीतिक कारण से पुलकेशिन की पसंद था। उनके पुत्रों कीर्तिवर्मन प्रथम और उनके भाई मंगलेश ने वहां स्थित गुफा मंदिरों का निर्माण कराया।
कीर्तिवर्मन प्रथम ने वातापी को मजबूत किया और उसके तीन बेटे थे, पुलकेशिन द्वितीय, विष्णुवर्धन और बुद्धवारास, जो उसकी मृत्यु के समय नाबालिग थे। कीर्तिवर्मन प्रथम के भाई मंगलेश ने राज्य पर शासन किया, जैसा कि महाकूट स्तंभलेख में उल्लेख किया गया है। 610 में, प्रसिद्ध पुलकेशिन द्वितीय सत्ता में आया और 642 तक शासन किया। वातापी प्रारंभिक चालुक्यों की राजधानी थी, जिन्होंने 6वीं और 8वीं शताब्दी के बीच कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु के कुछ हिस्सों और आंध्र प्रदेश पर शासन किया था।
क्रमशः…
© श्री सुरेश पटवा
भोपाल, मध्य प्रदेश
*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈