श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता पुस्तक दिवस पर…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 216 ☆

☆ # “पुस्तक दिवस पर…” # ☆

यह कैसी मूर्खतापूर्ण सोच है

यह कैसी नेगेटिव अप्रोच है

कि पुस्तकों की क्या जरूरत है

इन्हें पढने की किसको फुर्सत है

वह क्या जाने

इन पुस्तकों में क्या खास है

बहुत कुछ समाविष्ट है इनमें

जिन्हें पढ़ने की आस है

इनमें –

ज्ञान है संस्कार है

विज्ञान है चमत्कार है

अर्थ है कारोबार है

योगी का योग

सन्यासी का संसार है

धम्म का गूढ़ रहस्य

जीवन का सार है

प्रेम और विरह  है

संबंधों की टूटती धार है

अंधकार की पीड़ा है

निर्बल की वेदना है

सत्य की खोज है

जीने की चेतना है

संतो की वाणियाँ है

अनूठी कहानियाँ है

उपदेश है तपस्या का

जांबाज कुर्बानियां है

कवियों की कविताएं है

प्रेम और श्रृंगार है

कलम के कलमकारों की

रचनाएं बेशुमार है

भ्रमण की गुनगुन

फूलों का पराग है

मन को मंत्र मुग्ध  करता

संगीत और राग हैं 

शतरंज के खेल हैं 

सियासत के दांव हैं 

कहीं कड़ी धूप तो

कहीं ठंडी छांव हैं 

सदियों की रीतियाँ हैं 

झकझोरती कुरीतियां हैं  

मानवता को शर्मसार करती

समाज की नीतियां हैं 

कहीं सूरज चांद

तू कहीं नीला आसमान हैं 

कहीं मनभावन निसर्ग तो

कहीं गीत गाता इंसान हैं 

पुस्तकें हमारा अतीत हैं 

पुस्तकें  जीवन संगीत हैं 

पुस्तकें हमारी धरोहर हैं 

पुस्तकें शब्दों से हमारी प्रीत है

इन्हें बचाना हमारा धर्म है

इसमें हमें कैसी शर्म है

इनमें छिपे कई मर्म हैं 

इन्हें संजोकर रखना हमारा कर्म है /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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