श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “राम ने है देह त्यागी…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 75 ☆ राम ने है देह त्यागी… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

फिर नदी के शांत जल में

राम ने है देह त्यागी ।

 

अब नहीं होता कोई

ऋषि आहत क्रोंच्च बध से

नहीं लिखता चरित मानस

अब कोई तुलसी अबध से

 

भोगती वनवास जनता

नहीं सम्मोहन से जागी।

 

प्रतीक्षा में हैं पड़ीं

उद्धार को शापित शिलाएँ

हारता पुरुषार्थ पल-पल

टूटतीं बस प्रत्यंचाएँ

 

फिर किसी हलधर जनक का

हो गया है मन विरागी।

 

नाभि कुंडों में भरा है

हर किसी रावण के अमृत

और शक्ति के पुजारी

कर रहे उनको ही उपकृत

 

भूमिजा भू में समायी

अयोध्या फिर हुई अभागी।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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