(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता नारी तू नारायणी)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 237 ☆

? कविता नारी तू नारायणी ?

क्या महिला आरक्षण बदल सकता है, वह समाज

जहां

हर उस गुनाह में

आरोपी स्त्री को ही माना जाता है

जहां भी ऐसी कोई संभावना होती है।

बस स्त्री होने के चलते

प्रताड़ित होती है नारी

दोष पुरुष का हो तो भी

सारा आरोप स्त्री पर मढ दिया जाता है

विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण ,

स्त्रियों की पोषाक ,

स्त्रियों के बोलचाल , व्यवहार ,

भाव भंगिमा को जिम्मेदार बनाकर

पुरुष को क्लीन चिट देने में समाज मिनट भर नहीं लगाता

बदलना नहीं है

केवल सांसदों की संख्या में स्त्री प्रतिनिधित्व

बदलना है वह सोच

वह समाज

जिसमे

स्त्री को अपना सही पक्ष समझाने के लिए भी

जोर जोर से बोलना पड़े

महज इसलिए

क्योंकि वह एक स्त्री कह रही है।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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