श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “हमने इश्क़ जी लिया जी भर कर…” ।)

? ग़ज़ल # 122 – “हमने इश्क़ जी लिया जी भर कर…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

ग़म बिलकुल अजीब शय होता है,

ख़ाली दिमाग़ में ये मय होता है। 

*

हमने इश्क़ जी लिया जी भर कर,

बाद उसके सिर्फ़ अभिनय होता है।

*

मीरा के  हाथों में दिया गया जो,

प्याला ज़हर का सुधामय होता है।

*

तुम्हें  मुबारक  ख़ुश्बू  ग़ुलाब की,

जो  खार  मिला प्रेममय होता है।

*

रोता  हुआ आता  है तू  जहाँ में,

जाता  हुआ भी  दुखमय होता है।

*

पहचान ले  मुहब्बत  की तासीर,

वक्त  इश्क़ का मधुमय होता है।

*

धूप छाँव ज़रूरी पहलू आतिश के,

इनसे सबका ही परिचय होता है।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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