श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 36 ☆

☆ कविता ☆ “जाते हो तो…☆ श्री आशिष मुळे ☆

जाते हो तो हँसते जाना

अगर हम है बस कांटे

मगर फिक्र न करना जानां

हम फूलों का दिल नहीं दुखाते

 

कांटे है कांटे ही रहेंगे

होंगे नहीं गमगीन

कहीं ख़ुद फूल ना बन जाएं

आपका ग़म जो है इतना हसीन

 

जायज़ है आप बने है उनके लिए

खिलना आपका हक है

बने है हम बस अपने लिए

सख्ती हमारा नक्श है

 

यह धूप है बड़ी मस्त मस्त

कांटो को सख़्त दिल बनाए

जाते जाते आंसू मत गिराना

कहीं कांटे फिर से ना खिल जाए

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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