(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – स्माइली।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 243 ☆

? लघुकथा – स्माइली 😊 ?

हिन्दी, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, चाइनीज, बंगाली, मराठी, तेलगू …, जाने कितनी भाषायें हैं। अनगिनत बोलियां और लहजे हैं।  पर दुनियां का हर बच्चा इन सबसे अनजान, केवल स्पर्श की भाषा समझता है।  माँ के मृदु स्पर्श की भाषा, मुस्कान की भाषा। मौन की भाषा के सम्मुख क्रोध भी हार जाता है। प्रकृति बोलती है चिड़ियों की चहचहाहट में, पवन की सरसराहट में, सूरज की बादलों से तांक झांक में।

वह इमोजी साफटवेयर बनाता है। उसकी  वर्चुअल दुनियां बोलती है इमोजी के चेहरों की भाषा में। उसे बिल्कुल अच्छी नहीं लगती गुस्से वाली लाल इमोजी, और आंसू टपकाती दुख व्यक्त करते चेहरे वाली इमोजी। मिटा देना चाहता है वह इसे। सोचता है, क्या करना होगा इसके लिये। क्या केवल साफ्टवेयर अपडेट? या बदलनी होगी व्यवस्था। सोचते हुये जाने कब उसकी नींद लग जाती है। गालों पर सुनहरी धूप की थपकी से उसकी नींद टूटती है, बादलों की की ओट से सूरज झांक रहा था खिड़की से मुस्करा कर। स्माइली वाली इमोजी उसे बहुत अपूर्ण लगती है इस मनोहारी अभिव्यक्ति के लिये, और वह जुट जाता है और बेहतर स्माइली इमोजी बनाने में।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल apniabhivyakti@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments