श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय कविता “माना कि हम इतने बड़े नहीं हैं…”।)

☆ तन्मय साहित्य  #200 ☆

☆ माना कि हम इतने बड़े नहीं हैं…… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

माना कि हम इतने बड़े नहीं हैं

पर ये भी सच नहीं कि,

हम अपने पैरों पर खड़े नहीं हैं।

 

गिरते-गिरते उठे, चले

आगे सत्पथ पर

चलते रहे निरंतर ,कभी न

बैठे हम दूजों के रथ पर,

जीवन में अपनी मनवाने

कभी किसी से लड़े नहीं हैं

पर ये भी सच………

 

संघर्षों से रहे जूझते

हँसते-हँसते

मन वीणा के तारों को हम

रहे एक लय-स्वर में कसते,

कभी बेसुरे गीत भीड़ में

बेशर्मी से पढ़े नहीं हैं

पर ये भी सच………

 

दर्प भरे चेहरों से कभी

नहीं बन पाई

उनसे रखा दूर अपने को

रहे दिखाते जो प्रभुताई,

द्वेषभाव से राह किसी की

कंटक बन कर अड़े नहीं हैं

पर ये भी सच………

 

जो भी रही साधना अपनी

सहज सरल सी

बहती रही शब्द सरिता अपनी

गति से अविरल निर्मल सी,

आत्ममुग्ध हो खुद पर ही हम

इतराते नकचढ़े नहीं हैं

पर ये भी सच………।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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