श्री आशिष मुळे

☆ कविता ☆ “सोचता हूं ये अक्सर…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

गुलशन इक बसता है

इस नाचीज के भीतर

पंछी इक उड़ता है

यु आंखो से होकर

 

सोचता हूं ये अक्सर….

 

बरस जा ए फ़िरदौस

तूं मेरी जन्नत बनकर

कहीं बह ना जाऊं

यूहीं तुम्हें खोकर

 

सोचता हूं ये अक्सर….

 

यहां ना है बादल

है सूरज खिला हसकर

ना है कोई दौड़ ना है शर्यत

आंसू पीछे आओ छोड़कर

 

सोचता हूं ये अक्सर….

 

मन की मेरी वादिया

कितनी है खुबसुरत

रहो ना पल दो पल

तूं मेरी होकर…

 

सोचता हूं ये अक्सर….

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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