आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित नवगीत  “~ क्यों करे?~”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 125 ☆ 

☆ नव गीत ~ क्यों करे? ~ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

*

चर्चा में

चर्चित होने की चाह बहुत

कुछ करें?

क्यों करे?

*

तुम्हें कठघरे में आरोपों के

बेड़ा हमने।

हमें अगर तुम घेरो तो

भू-धरा लगे फटने।

तुमसे मुक्त कराना भारत

ठान लिया हमने।

‘गले लगे’ तुम,

‘गले पड़े’ कह वार किया हमने।

हम हैं

नफरत के सौदागर, डाह बहुत

कम करें?

क्यों करे?

*

हम चुनाव लड़ बने बड़े दल

तुम सत्ता झपटो।

नहीं मिले तो धमकाते हो

सड़कों पर निबटो।

अंग हमारे, छल से छीने 

बतलाते अपने।

वादों को जुमला कहते हो

नकली हैं नपने।

माँगो अगर बताओ खुद भी,

जाँच कमेटी गठित  

मिल करें?

क्यों करे?

*

चोर-चोर मौसेरे भाई

संगा-मित्ती है।

धूल आँख में झोंक रहे मिल

यारी पक्की है। 

नूराकुश्ती कर, भत्ते तो

बढ़वा लेते हो।

भूखा कृषक, अँगूठी सुख की

गढ़वा लेते हो।

नोटा नहीं, तुम्हें प्रतिनिधि

निज करे।  

क्यों करे?

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१४-१२-२०१८, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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