हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार #174 ☆ व्यंग्य – फर्ज़ बनाम इश्क ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर एवं विचारणीय व्यंग्य  ‘फर्ज़ बनाम इश्क’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 174 ☆

☆ व्यंग्य ☆ फर्ज़ बनाम इश्क

हाल में एक सनसनीख़ेज़ ख़बर पढ़ी कि बांग्लादेश की सीमा पर ड्यूटी पर तैनात सीमा सुरक्षा बल की स्निफ़र कुतिया ने तीन बच्चों या पिल्लों को जन्म दे दिया।  सनसनीख़ेज़ इसलिए कि ड्यूटी पर तैनात कुतियों को गर्भ धारण करने की इजाज़त नहीं होती।इसकी वजह यह है कि गर्भ धारण के काल में कुतियों की सूँघने की क्षमता क्षीण हो जाती है। ड्यूटी के दौरान उनके आचरण के ऊपर सख़्त निगरानी रखी जाती है और वे तभी बच्चे पैदा कर  सकती हैं जब विभाग का पशु-चिकित्सक इजाज़त दे। अब यह समझना मुश्किल हो रहा है कि इतनी चौकसी के बावजूद कुतिया ने अपने ‘हैंडलर्स’ की नज़र बचाकर अपना प्रेमी कैसे तलाश लिया। ज़ाहिर है कि कुतिया ने फर्ज़ के ऊपर इश्क को तरजीह दी, जो अक्षम्य अपराध है।इस मामले में कोर्ट ऑफ़ इनक्वायरी बैठा दी गयी है। कुतिया को ड्यूटी पर इश्क फरमाने की जो भी सज़ा मिले, उसके ‘हैंडलर्स’ की जान निश्चित ही साँसत में होगी।

अभी बच्चों के पिता के बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं हुई है। मेरी चिन्ता यह है कि चूँकि यह लव-स्टोरी बांग्लादेश की सीमा पर घटित हुई है, कहीं ऐसा न हो कि देश के सयानों के द्वारा इसमें भी लव-जिहाद का कोण ढूँढ़ लिया जाए।ऐसा हुआ तो हमारे न्यूज़ चैनलों की पौ-बारह हो जाएगी। उन्हें दिन भर मुर्गे लड़ाने के लिए मसाला और वसीला बिना मेहनत के मिल जाएगा। उम्मीद है इस घटना का भारत-बांग्लादेश रिश्तों पर असर नहीं होगा।

मेरी चिन्ता की ख़ास वजह यह है कि यह जुमला इंसानों पर कई बार चिपकाया जा चुका है, इसलिए अब पशु-पक्षियों का नंबर लगने की पूरी संभावना है। इस सिलसिले में मुझे कथाकार पुन्नी सिंह की मार्मिक कहानी ‘काफ़िर तोता’ याद आती है। तोता जिस परिवार में रहता है उसके सदस्य उसे अपने धर्म के अनुसार मंत्र आदि सिखाते हैं।कुछ समय बाद वह परिवार तोते को वहीं छोड़कर अन्यत्र चला जाता है और घर में दूसरे समुदाय का परिवार आ जाता है। बेचारा पक्षी इस परिवर्तन का मतलब नहीं समझ पाता और वह वही दुहराता है जो उसे सिखाया गया है। नतीजतन उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। मतलब यह कि निरीह पशु-पक्षियों को भी आदमी के पूर्वाग्रहों-दुराग्रहों से अपनी जान बचा पाना मुश्किल है।

मशहूर कथाकार सआदत हसन मंटो की कहानी ‘टिटवाल का कुत्ता’ भी याद आती है। कुत्ता सीमा पर तैनात हिन्दुस्तानी और पाकिस्तानी फौजों के बीच भोजन के लालच में दौड़ता रहता है और अंततः दोनों  की आपसी घृणा का शिकार होकर मारा जाता है। एक सिपाही टिप्पणी करता है, ‘अब कुत्तों को भी या तो हिन्दुस्तानी होना पड़ेगा या पाकिस्तानी।’ संदेश साफ है, जो बँटेंगे नहीं वे मारे जाएंगे।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈