श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# पुरुषार्थ… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 96 ☆

☆ # पुरुषार्थ… # ☆ 

यह फूलों से भरी वाटिका

कितनी नयनाभिराम है

महक रही खुशबू से

प्रसन्न हर खास और आम है

 

रंगबिरंगे खिले खिले फूल

आंखों को को भा रहे हैं

भ्रमर भी मस्ती में

झूमते जा रहे हैं 

 

मौसम खुशगवार है

कली कली मे प्यार है

प्रीत है बिखरी हुई

बहार ही बहार है

 

हर किस्म के फूल

इस गुलदस्ते में हैं

हर रंग के फूल

इस गुलदस्ते में हैं

भिन्न भिन्न प्रजातियां हैं

हर सुगंध के फूल

इस गुलदस्ते में हैं

 

पर अब यह कैसी

हवा चल रही है

हम सबसे

कुछ कह रही है

 

क्यों मसलें जा रहे हैं फूल ?

क्यों मसली जा रही है

हर अधखिली फूल या कली ?

 

हर कली फरियाद कर रही है

अनजाने भय से डर रही है

न्याय सलाखों के पीछे

छुप गया है

हर आवाज बिन सुने

मर रही है

 

यह सब अनर्थ है

मानवीय मूल्य व्यर्थ है

सम्मान कर पूजा

जा रहा है जिन्हें

क्या उनका यही

पुरूषार्थ है ? /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588\

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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