प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण कविता  “खो उसको नैन आज फिर …”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा 91 ☆ ’’खो उसको नैन आज फिर…”  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

मुस्कानों में दुख-दर्द को बहलाये हुये हैं

चोटों पै चोट दिल पै कई खाये हुये हैं।

 

है याद मैं जब से चला खपता ही रहा हूँ

पर फर्ज को कर याद बढ़े आये हुये हैं।

 

करता रहा आये दिनों मुश्किल का सामना

किससे कहें कि किस तरह सताये हुये हैं।

 

जिसने जो कहा सुन लिया पर जो सही किया

इससे ही उलझनों से निकल आये हुये हैं।

 

हित करके सबके साथ ही कुछ भी न पा सका

चुप सारा बोझ अपना खुद उठाये हुये हैं।

 

औरों से तो कम अपनों से ही ज्यादा मिला है

जो बेवजह ही अपना मुंह फुलाये हुये है।

 

मन पूछता है बार-बार गल्ती कहाँ है ?

चुप रहने की पर हम तो कसम खाये हुये हैं।

 

लगता है अकेले में कही बैठ के रोयें

पर तमगा समझदारी का लटकाये हुये हैं।

 

दुनियाँ ने किसी को कभी पूछा ही कहाँ है ?

संसार में सब स्वार्थ में भरमाये हुये हैं।

 

लगता है मुझे यहाँ पै कुछ हर एक दुखी हैं

यह सोच अपने मन को हम समझाये हुये हैं।

 

अवसाद के काँटों से दुखी मन को बचाने

आशा के मकड़जालों में उलझाये हुये हैं।

 

पर जिसका हर कदम पै सहारा रहा सदा

खो उसको नैन आज फिर भर आये हुये हैं।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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