श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 42 – मनोज के दोहे

कजरी

झूला सावन में लगें, गले मिलें मनमीत।

कजरी की धुन में सभी,गातीं महिला गीत।

देवी की आराधना, कजरी-सावन-गीत।

नारी करतीं प्रार्थना, जीवन-पथ में जीत।।

तीज

सावन-भादों माह में, पड़ें तीज-त्यौहार।

संसाधन कैसे जुटें, महँगाई की मार।।

भाद्र माह कृष्ण पक्ष को, आती तृतिया तीज ।

महिला निर्जल वृत करें, दीर्घ आयु ताबीज ।।

चूड़ी

लाड़ो चूड़ी पहन कर, भर माथे सिंदूर।

चली पराए देश में, मात-पिता मजबूर।।

शृंगारित परिधान में, चूड़ी ही अनमोल।

रंग बिरंगी चूड़ियाँ, खनकातीं कुछ बोल।।

मेहँदी

सपनों की डोली सजा, आई पति के पास।

हाथों में रच-मेहँदी, पिया मिलन की आस।।

लालरँग मेहँदी रची, आकर्षित सब लोग।

प्रियतम के मनभावनी, मिलते अनुपम भोग।।

झूला

सावन की प्यारी घटा, लुभा रही चितचोर।

झूला झूलें चल सखी, हरियाली चहुँ ओर।।

सावन में झूला सजें, कृष्ण रहे हैं झूल।

भारत में जन्माष्टमी, मना रहे अनुकूल।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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