डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 83 –  दोहे ✍

बादल आकर ले गए, उजली उजली धूप ।

अंधियारे में चमकते, यादों के स्तूप ।।

 

हिरन सरीखी याद है, भरती खूब कुलांच।

 चूक जरा – सी यदि हुई ,गड़े पांव में कांच ।।

 

याद हमारी आ गई, या कुछ किया प्रयास ।

अपना तो यह हाल है, यादें बनी लिबास ।।

 

फूल तुम्हारी याद के, जीवन का अहसास।

वरना है यह जिंदगी जंगल का रहवास।।

 

पैर रखा है द्वार पर, पल्ला थामें पीठ।

कोलाहल का कोर्स है, मन का विद्यापीठ।।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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