सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य  विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं ।  वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी की  एक भावप्रवण कविता  ‘शोर ‘।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 9 ☆

☆ शोर

घोर बवंडर की एक शाखा
इन्सा के मन में जुड़ जाने दो
जब जब हिले धरती का हिया
शोर शोर मच जाने दो…..

जो उथल पुथल मचती है भू में
वह मन मन में मच जाने दो
मन में भरा है विष का प्याला
टूट टूट उसे जाने दो
शोर शोर मच जाने दो…..

एक सैलाब वन से भी गुजरे
आँधी को मच जाने दो
ढह ढह जाए पेड़ द्वेष के
मधुर बीज बो जाने दो
शोर शोर मच जाने दो…..

© सौ. सुजाता काळे

पंचगनी, महाराष्ट्र।

9975577684

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