श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी “काव्यांजलि” – वंदे मातरम…. । )

☆  तन्मय साहित्य  # 95 ☆

 ☆ “काव्यांजलि” – वंदे मातरम…. ☆

देश प्रेम के गाएँ  मंगल गान

वंदे मातरम

तन-मन से हम करें राष्ट्र सम्मान

वंदे मातरम।।

 

हम सब ही तो कर्णधार हैं

प्यारे  हिंदुस्तान  के

तीन रंग के गौरव ध्वज को

फहराए हम शान से,

इसकी आन बान की खातिर

चाहे जाएँ प्राण

वंदे मातरम

देश प्रेम के गाएं मंगल गान, वंदे मातरम।

 

धर्म पंथ जाति मजहब

नहीं ऊँच-नीच का भेद करें

भाई चारा और प्रेम

सद्भावों  के हम बीज धरें,

मातृभूमि दे रही हमें

धन-धान्य सुखद वरदान,

वंदे मातरम

देश प्रेम के गाएँ मंगल गान, वंदे मातरम

 

अमर रहे जनतंत्र

शक्ति संपन्न रहे भारत अपना

सोने की चिड़िया फिर

जगतगुरु हो ये सब का सपना

देश बने सिरमौर जगत में

यह दिल में अरमान,

वंदे मातरम

देश प्रेम के गाएँ मंगल गान, वंदे मातरम।

 

युगों युगों तक लहराए

जय विजयी विश्व तिरंगा ये

अविरल बहती रहे, पुनीत

नर्मदा, जमुना, गंगा ये,

सजग  जवान, सिपाही, सैनिक

खेत और खलिहान,

वंदे मातरम

देश प्रेम के गाएँ मंगल गान, वंदे मातरम।।

 

सुरेश तन्मय

अलीगढ़/भोपाल

मोबा. 9893266014

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares
5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments