सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं ।  सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता “चांदनी”। )

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 67 ☆

☆ चांदनी

आसमान की चादर पर चांदनी

मस्त हो, इतरा रही थी,

उसकी ग़ज़ब सी नज़ाकत थी,

एक पाँव भी आगे बढ़ाती

तो हवा पायल बन खनक उठती,

और उसकी मुस्कान पर तो

सेंकडों लोग फ़िदा थे –

उनमें से एक उसका आशिक़

बेपरवाह समंदर भी था!

 

समंदर ने उससे कहा,

“बहुत मुहब्बत करता हूँ तुमसे!”

और वो चांदनी इठलाती हुई

उसकी आगोश में समा गयी!

 

चांदनी तो

यह भी न समझ पायी

कि उसका रूप ही बदल गया है

और वो हो गयी है क़ैद

समंदर के घेरे में…

वो तो उसे एक हसीं मकाँ समझ

खुश रहती!

 

यह तो उसने कई दिनों बाद जाना

कि शांत सा समंदर

दिखता कुछ और था

पर उसके मन में कुछ और था;

उसके मन के ऊफ़ान को देख,

और उसका यह बनावटी पहलू देख,

आज़ादी को तरसने लगी!

 

आज मैंने देर रात को देखा

पहुँच गयी थी वापस आसमान में

और फिर मुसकुरा रही थी!

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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