श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है जिंदगी की हकीकत बयां करती एक भावप्रवण कविता “मकर संक्रांति”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 26 ☆ 

☆ मकर संक्रांति ☆ 

सुर्य उत्तरायण में आया

एक संदेशा संग-संग लाया

अब कम होगा अंधियारा

बढ़ता जायेगा प्रकाश

पतझड़ बीतेगा पल पल

जगेगी नव जीवन की आस

फूलों के मेले लगेंगे

यौवन के रेले लगेंगे

महकेगा हर आंगन आंगन

चहकेगा हर प्रांगण प्रागंण

ठिठुरन भरा शिशीर जायेगा

रंग बिखेरता बसंत आयेगा

 

देश के हर एक प्रांत में

खुशीयों की भरमार है

भिन्न भिन्न प्रथायें

भिन्न भिन्न त्योहार है

कहीं लोहिड़ी, कहीं पोंगल

कहीं मनी मकर संक्रांति

तिड़-गुड़, मुंगफली बांटकर

मिटा रहे हैं मनकी भ्रांति

तिड़ गुड़ खाओ, मीठा बोलो

बंद दिल के दरवाजे खोलो

गांठें खोलो गले लगाओं

मकर संक्रांति दिल से मनाओ

 

आओ मिलकर पतंग उड़ाये

आसमान में हम छा जाये

रंग बिरंगी अपनी पतंगें

हमारी संस्कृति को दर्शाये

जिसका होगा प्रेम का धागा

स्नेह का मांझा सीदा-सादा

सपनों की उड़ती हुई पतंग

नीलगगन से

करती हो मिलने का वादा

कितने रंगों में रची बसी है

यह मकर संक्रांति

तिलों में तेल बहुत हैं

फिर भी है शांति

हवायें मदहोश है

तिनकों में भी जोश है

कहीं यह फैला ना दे

चारों तरफ अशांति

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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