डॉ निधि जैन 

डॉ निधि जैन जी  भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण  कविता  “नारी”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 30 ☆ 

☆ नारी ☆

हे नारी, तुम्हें प्रणाम, करें अपनी शक्ति का आव्हान।

 

तुम शक्ति और विश्वास का आधार हो,

तुम जीवन देने वाली धरती का श्रृंगार हो,

तुम आत्मशक्ति बढ़ाने वाली साज का उदगार हो,

तुम हर राहगीर की पतवार हो,

हे नारी, तुम्हें प्रणाम, करें अपनी शक्ति का आव्हान।

 

हे नारी, तुम शक्ति से काली,

भक्ति से मीरा हो,

तुम समुद्र में सीप के मोती के समान हो,

तुम शब्दों में कविता के समान हो,

हे नारी, तुम्हें प्रणाम, करें अपनी शक्ति का आव्हान।

 

आओ अपनी शक्ति को पहचानो,

ले काली का रूप, करो राक्षसों का संहार,

एक साथ मिलकर करें धारी आसमान,

हिला दें पूरा ब्रह्माण्ड,

हे नारी, तुम्हें प्रणाम, करें अपनी शक्ति का आव्हान।

 

नारी, तुम पुराणों मे गीता हो, नदी में गंगा हो,

तुम रंग में सफेद, राग में मल्हार हो,

तुम लक्ष्मी, कभी सरस्वती, कभी दुर्गा कहलाती हो,

कभी कैकेयी, कभी मंथरा कहला कर कोसी जाती हो,

हे नारी, तुम्हें प्रणाम, करें अपनी शक्ति का आव्हान।

 

नारी क्यों तुम्हें युग युग में अग्नि परीक्षा देनी पड़ती है,

क्यों चीर-हरण से गुजरना पड़ता है,

क्यों आँखों में पट्टी बांध दी जाती है,

क्यों हर युग में पूजी जाती है,

हे नारी, तुम्हें प्रणाम, करें अपनी शक्ति का आव्हान।

 

©  डॉ निधि जैन,

पुणे

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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