श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं बेटियों पर आधारित कविता  “बाबुल के घर जन्म ले बेटियां …. ।    सकारात्मक सुसंस्कृत सन्देश देती स्त्री विमर्श पर आधारित कविता के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 72 ☆

☆ कविता – बाबुल के घर जन्म ले बेटियां …. ☆

?‍?

गूंध गूंध जब गीली मिट्टी

कहीं खिलौना कहीं बिछौना बनती कहीं दिए

बाबुल के घर जन्म ले बेटियां

संवरती कई आकार लिए

 

हृदय धीर का पावन झरना

दया ममता प्रेम साकार

अपने तन पर आंचल लेकर

कष्ट सहे चलती अंगार

बुनती रहती स्वप्न सुनहरे

जीवन का आधार लिए

 

बाबुल के घर जन्म ले बेटियां

संवरती कई आकार लिए

 

सृष्टि की अनुपम देन नारी

घर आंगन संवारती वह

जीवन को जीवित रखती है

दो वंशों का भार सह

लुक्का चुप्पी खेला कूदी

हुई सयानी श्रंगार किए

 

बाबुल के घर जन्म ले बेटियां

संवरती कई आकार लिए

 

जैसे कच्ची मिट्टी का घड़ा

बाबुल ने है खड़ा किया

ब्याह रचाऊगां इसका

जोड़ी बनेगी राम सिया

लाल चुनरिया ओढ़ सिर

बनेगी वह साजन की प्रिये

 

बाबुल के घर जन्म ले बेटियां

संवरती कई आकार लिए

 

नारी ही चढ़े चाक पर

ले सपनों की सुंदर दुनिया

ममता के आंचल में समेटे

कई रूपों में ढलती मुनिया

बंध जाती कई रिश्तो में वह

लेकर खुशियों के दिए

 

बाबुल के घर जन्म ले बेटियां

संवरती कई आकार लिए

 

गूंध गूंध जब गीली मिट्टी

कहीं खिलौना कहीं बिछौना बनती कहीं दिए

बाबुल के घर जन्म ले बेटियां

संवरती कई आकार लिए

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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