श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक घटना पर आधारित एक भावप्रवण कविता “# उत्सव  #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 154 ☆

☆ # उत्सव  #

जगतू फूला नहीं समा रहा है

उसके चेहरे पर चमक देख

चांद भी शरमा रहा है

उसके झोपड़पट्टी में

खूब रेल पेल है

नये नये रंग, खूशबू के

किस्म किस्म के

अलग-अलग परिधानों के

लोगों की ठेलमठेल है

बस्ती में चारों तरफ जगमगाहट है

खुशियों के आने की

छुपी हुई आहट है

बस्ती में नयी सड़क और

नाली बन रही है

पीपल पेड़ के नीचे

चबूतरे पर

कहीं चिलम का सूट्टा तो कहीं

भांग छन रही है

जगतू की पत्नी

रोज नयी साड़ी बदल रही है

बच्चों के हाथों में

कहीं फटाके तो कहीं

फुलझड़ी जल रही है

बस्ती के हर झोपड़ी में

अलग-अलग झंडे लगे हैं

इस बस्ती के वासियों के तो

शायद भाग जगे हैं 

रात के अंधेरे में

कहीं अंगूरी

तो कहीं मिठाई बटी है

बस्ती वालों की रात

मदहोशी में कटी है

बिचौलिए क्या क्या चाहिए

लिख रहे हैं 

कहीं कहीं ठंड से बचने

बांटतें कंबल दिख रहे हैं

सुबह-शाम

चाय नाश्ता मुफ्त मिल रहा है

कुछ पल के लिए

चिपका हुआ पेट

अर्ध नग्न शरीर

धँसी हुई आंखें

क्लांत चेहरा

खिल रहा है

कहीं कहीं स्वादिष्ट आहार है

तो कहीं  कहीं मांसाहार  है

लक्ष्मी जी की कृपा

हर परिवार पर हो रही है

कुछ दिनों के लिए ही सही

उनकी गरीबी

दूर हो रही है

 

मैंने जगतू से कहा – भाई !

तुम्हारे तो मज़े ही मज़े है

बस्ती के सभी परिवार 

सजे धजे है

जगतू बोला – साहेब !

यह उत्सव हम गरीबों के

जीवन में खुशियां

पांच साल में

एक बार ही लाता है

फिर अगले पांच साल तक

हमें देखनें या पूछनें

कोई नहीं आता है /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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