श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता हे राम ! तुम नहीं आये। ) 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 28 ☆ हे राम ! तुम नहीं आये

हे राम ! तुम नहीं आये,

यहां हर गली-मौहल्लें चौराहे पर सैकड़ों रावण प्रकट हो गए,

हर वर्ष रावण को हम जलाते,

मगर जलकर पुर्नजीवित हो जाता, रावण कभी  मरता नहीं||

हे कृष्ण ! तुम नहीं आये,

यहां हर चौराहे, हर गली- मौहल्लें में खुले आम चीरहरण होने लगे हैं,

रोकने की कोशिशे व्यर्थ जाती,

हैवानियत लोगों की बढ़ती जा रही, अब सब की इज्जत पर आ पड़ी ||

हे राम ! अब तो राम तुम आ जाओ,

यहां अब लक्ष्मण जैसा कोई भाई नहीं, यहां अब भाई-भाई दुश्मन है,

भाई-चारा वापस बढ़ाना है,

राम राज्य लाकर लक्ष्मण जैसे भाई बनने की सौगंध दिला जाओ ||

अब तो कृष्ण तुम आ जाओ,

यहां भाई-भाई कौरव हो गए हैं और घर-घर में महाभारत हो रही ,

अपने गीता के ज्ञान से,

भाई-भाई में प्यार-त्याग और सम्मान की शिक्षा का अलख जगा जाओ||

 

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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