श्री प्रतुल श्रीवास्तव 

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक श्री प्रतुल श्रीवास्तव, भाषा विज्ञान एवं बुन्देली लोक साहित्य के मूर्धन्य विद्वान, शिक्षाविद् स्व.डॉ.पूरनचंद श्रीवास्तव के यशस्वी पुत्र हैं। हिंदी साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रतुल श्रीवास्तव का नाम जाना पहचाना है। इन्होंने दैनिक हितवाद, ज्ञानयुग प्रभात, नवभारत, देशबंधु, स्वतंत्रमत, हरिभूमि एवं पीपुल्स समाचार पत्रों के संपादकीय विभाग में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया। साहित्यिक पत्रिका “अनुमेहा” के प्रधान संपादक के रूप में इन्होंने उसे हिंदी साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान दी। आपके सैकड़ों लेख एवं व्यंग्य देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आपके द्वारा रचित अनेक देवी स्तुतियाँ एवं प्रेम गीत भी चर्चित हैं। नागपुर, भोपाल एवं जबलपुर आकाशवाणी ने विभिन्न विषयों पर आपकी दर्जनों वार्ताओं का प्रसारण किया। प्रतुल जी ने भगवान रजनीश ‘ओशो’ एवं महर्षि महेश योगी सहित अनेक विभूतियों एवं समस्याओं पर डाक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण भी किया। आपकी सहज-सरल चुटीली शैली पाठकों को उनकी रचनाएं एक ही बैठक में पढ़ने के लिए बाध्य करती हैं।

प्रकाशित पुस्तकें –ο यादों का मायाजाल ο अलसेट (हास्य-व्यंग्य) ο आखिरी कोना (हास्य-व्यंग्य) ο तिरछी नज़र (हास्य-व्यंग्य) ο मौन

आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय बुन्देली हास्य व्यंग्य  बातन पै नईं पैसा पै भरोसा)

साप्ताहिक स्तम्भ ☆ प्रतुल साहित्य # 4

☆ बुंदेली हास्य व्यंग्य ☆ “बातन पै नईं पैसा पै भरोसा” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव

संजा कें पार्क की एक बैंच पै बैठो मैं पान चबात भओ फूलन की खुशबू सें सनी ठंडी – ठंडी नौनी हवा को मजा लै रओ हतो। देखत का हों कै एक हांथ में टारच ओ एक हांथ में डंडा लयें पार्क को चौकीदार मोरे सामूं ठांड़ो है। बो सामू लगी एक तख्ती खों टारच की रोसनी से नहवात भओ मोसें बोलो – “आपनें पढ़ो नईं कै पार्क में आकें थूंकबो, पान गुटका खाबो, बीड़ी सिगरिट, सराब पीबो मना है। ” मोने कही, भइया पढ़ लओ है – लिखो है कै पार्क में आकें पान खाबो मनो है, रही हम तौ बाहर सें खाकैं आये हें। मोरे ज्वाब सें चौकीदार गुस्सया गओ, ओको मुंह लाल हो गओ। मेंने सोची काये न गुस्साए, जबसें अपने देस के परधान मंत्री ने खुदखों चौकीदार कहो है तबसें देस भर के चौकीदारन को स्टेटस बढ़ गओ है। आजकाल कौंनऊ चौकीदार खुदखों उपपरधान मंत्री सें कम नईं समझे। मोरे ज्वाब सें भन्नाओ चौकीदार कछू ऊंची आवाज में बोलो – मानों कै आप पान बाहर सें खाकें आये हौ रही पान की पिचकारी तौ पार्क के अंदरई मार हो। में बोलो – प्यारे मोरी ओर से निस फिकर रहो, 10 रुपैया को पान खाओ है, एक एक पैसा वसूल कर हों, जरा भी न थूंक हों। वो बोलो – भइया मोहे तुमाई बात पै भरोसा नईंयां, बाहर जाओ, पान थूंक कें कुल्ला करकें आओ। मेंने कही – चौकीदार भइया पार्क में जघा जघा पान की पीक डरी है, बीड़ी सिगरिट के टुकरा परे हें, क्यारियन सें सराब की खाली बोतलें सोई झांक रई हें। ओट में बैठे ज्वान जोड़न की हरकतन सें झाड़ियें सोई हिल रईं हें। बो गुस्सा में जोर सें बोलो – इतै को चौकीदार को है ? मेंने कई चौकीदार तो तुमई कहाये। ओने तुरतई सवाल दागो – फिर हमाये देखबे वाली चीजन खों तुम काये देख रये। हमने कही भइया गुस्सा न हो हम तो न थूंकबे की कसम खात भये इते बैठकें चैन सें पान चबाबे की परमीशन चाहत हें। बो एक तरफ थूंकत भओ बोलो – हमें तुमाई बात पै तनकऊ भरोसा नैंयां, पीक की पिचकारी मारबे में कित्तो टेम लगत ? तुम तो बहस ने करौ बाहर जाओ। हमने कही, भइया जू तुम हमें थूंकबे सें रोक रहे और खुद थूंक रहे हो ! हमाई बात सें चौकीदार साब को गुस्सा बढ़ गओ। बोलो- हम तौ पार्कई में रहत। लेट्रिन, नहाबो-धोबो, थूंकबो-खखारबो सब कछू पार्क मेंई करत। जे बंदिशें हमाये लाने नैंयां, बाहर वालों के लाने हें। देखो मुतकी बातें कर लईं, अब निकरो इतै सें। हम आवाज में मिसरी घोलत भये बोले, चौकीदार भइया दया करकें बतायें कै हमाये न थूंकबे के वादे पै तुम्हें केंसे भरोसा हूहे ? चौकीदार मुस्कात भओ बोलो – एकै तरीका है एको। हमने पूंछी का ? ओने कही हमाओ मों बंद कर दो फिर कछू भी करौ हम न देख हें। मेंने जोर को ठहाको लगाओ और कही बस इत्ती सी बात पै खफा हो! ल्यो एक पान तुम सोई दबा लो, मों बंद हो जैहे। अबकी मोरी बात सुनकें चौकीदार ठहाका लागत भओ बोलो – बो टेम गओ भइया जब चाय पान सें लोगन के मों बंद हो जाता हते। अब तो जित्तो बढ़ो काम उत्तो बढ़ो दाम, वो भी कड़क और नगद। हमने ओकी टारच एक दूसरी तख्ती पै चमका कें कही – भइया जी ईपै तो लिखो है कै रिश्वत लेबो और देबो जुरम है। बो फिर हंसो, बोलो – जो तो देश भक्ति-जनसेवा और सत्यमेव जयते के ठिकानों समेत देश भर में लिखो है। उते भी लिखो रहो जहां सें आज हम सौ रुपैया रिश्वत देकें अपने बाप को मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाकें लाये। तुमई बताओ हम लें हें न तो दें हें कहां सें। हमने कही अच्छा बताओ इते कित्तो देने पड़त ? बो बोलो- पार्क में पान, बिड़ी, सिरगिट के लाने दस रुपैया, सराब पीबे पचास रुपैया और लड़की के साथ बैठबे के सौ रुपैया। जौन के पास सराब और लड़किया नइंयां तो ? ओने कही, सब इंतजाम हो जेहे आप चिंता ने करो। रुपैया में बड़ी ताकत होत है। रुपैया सें तो अब सरकार लौ बन और बिगड़ रई है। मोहे सोच में डूबो देखकें बो बोलो – सब पैसा मोरी जेब में नईं रहे साब, ऊपर भी देंने पड़त है। अब टेम बर्बाद ने करो, फटाफट 10 को नोट निकारो, मोहे पूरो पार्क चेक करने है। में चुपचाप उठो औ बाहर की तरफ चल दओ।

© श्री प्रतुल श्रीवास्तव 

संपर्क – 473, टीचर्स कालोनी, दीक्षितपुरा, जबलपुर – पिन – 482002 मो. 9425153629

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments