डॉ अ कीर्तिवर्धन

ई- अभिव्यक्ति  में डॉ अ कीर्तिवर्धन जी  का हार्दिक स्वागत है। हम भविष्य में आपके सद्साहित्य को अपने पाठकों तक पहुंचाने का  प्रयास  करेंगे । इसी तारतम्य में प्रस्तुत है आपकी में आपकी एक अतिसुन्दर कविता ” नया दौर “ )

 ☆ नया दौर ☆

 

नये दौर के इस युग में, सब कुछ उल्टा पुल्टा है,

महँगी रोटी सस्ता मानव, गली गली में बिकता है।

 

कहीं पिंघलते हिम पर्वत, हिम युग का अंत बताते हैं,

सूरज की गर्मी भी बढ़ती, अंत जहां का दिखता है।

 

अबला भी अब बनी है सबला, अंग प्रदर्शन खेल में,

नैतिकता का अंत हुआ है, जिस्म गली में बिकता है।

 

रिश्तो का भी अंत हो गया, भौतिकता के बाज़ार में,

कौन पिता और कौन है भ्राता, पैसे से बस रिश्ता है।

 

भ्रष्ट आचरण आम हो गया, रुपया पैसा खास हो गया,

मानवता भी दम तोड़ रही, स्वार्थ दिलों में दिखता है।

 

पत्नी सबसे प्यारी लगती, ससुराल भी न्यारी लगती,

मात पिता संग घर में रहना, अब तो दुष्कर लगता है।

 

डॉ अ कीर्तिवर्धन

विद्यालक्ष्मी निकेतन, 53 -महालक्ष्मी एन्क्लेव, मुज़फ्फरनगर -251001 ( उत्तर प्रदेश )

8 2 6 5 8 2 1 8 0 0

[email protected]

Please share your Post !

Shares
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments