स्वतन्त्रता दिवस विशेष 

सुश्री पल्लवी भारती 

(सुश्री पल्लवी भारती जी का e-abhivyakti में हार्दिक स्वागत है। आज प्रस्तुत है आजादी के सात दशकों बाद भी देशवासियों की चेतना को जागृत करने हेतु स्वतंत्रता के मायनों का मंथन करने पर आधारित उनकी रचना  ‘स्वतन्त्रता मंथन’।)

संक्षिप्त परिचय:

शिक्षा– परास्नातक मनोविज्ञान, बनारस हिन्‍दू विश्वविद्यालय (वाराणसी)

साहित्यिक उपलब्धियाँ– अनेक पुरस्कार, सम्मान, उपाधियाँ प्राप्त, मुख्य पत्र-पत्रिकाओं एवं अनेक साझा काव्य संग्रहों में कविता एवं  कहानियाँ प्रकाशित।

 

स्वतंत्रता-मंथन 

 

विद्य वीरानों में सँवरती, कब तक रहेगी एक माँ?

घुट रही वीरों की धरती, एक है अब प्रार्थना।

ना रहे ये मौन तप-व्रत, एक सबकी कामना।

मानवता पनपें प्रेम नित्-नित्, लहु व्यर्थ जाए ना॥

 

हो रहे हैं धाव ऐसे, कर उन्मुक्त कालपात्र से।

है बदलते भाव कैसे, संत्रास भाग्य इस राष्ट्र के!

हो भगत-सुखदेव जैसे, वीर सुत जिस राष्ट्र में।

टिक सकेंगे पाँव कैसे, मोहांध धृतराष्ट्र के॥

 

बारूद में धरती धुली, कह रही है वेदना।

इस बलिवेदी की कीर्ति, बन गयी ब्रह्म-उपमा।

अमर गीत क्रांति की, बन गयी जन-चेतना।

स्वयं बद्ध पतनोत्थान की, जग कर रहा है मंत्रणा॥

 

पल्लवी भारती ✍

संपर्क –  बेलपाड़ा, मधुपुर (जिला –  देवघर) पिन –815353  झारखंड मो- 8808520987,  ई-मेल– pallavibharti73@gmail. com

 

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नरेंद्र राणावत

बहुत ही उम्दा लेखन