श्री तीरथ सिंह खरबंदा

(ई-अभिव्यक्ति में सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री तीरथ सिंह खरबंदाजी का हार्दिक स्वागत। आपने विधि विषय में पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की है। व्यंग्य लेखन के क्षेत्र में सतत सक्रिय, विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन-प्रकाशन तथा हलफनामा, इक्कीसवीं सदी के अंतरराष्ट्रीय श्रेष्ठ व्यंग्यकार एवं हमारे समय के धनुर्धारी व्यंग्यकार, साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। वर्ष 2023 में पहला व्यंग्य संग्रह “सुना है आप बहुत उल्लू हैं” प्रकाशित हुआ। वर्ष 2024 में दूसरा व्यंग्य संग्रह “झूठ टोपियाँ बदलता रहा” प्रकाशित हुआ। वर्ष 2022 में भारतीय स्टेट बैंक द्वारा स्पंदन साहित्य सम्मानसंप्रति : इंदौर में विधि एवं साहित्य के क्षेत्र में सतत सक्रिय। आज प्रस्तुत है आपका एक अप्रतिम व्यंग्य – मलिहाबाद की आमसभा।)

☆ व्यंग्य ☆ मलिहाबाद की आमसभा ☆ श्री तीरथ सिंह खरबंदा ☆

आज मलिहाबाद के आमबाग में पहली आमसभा होने जा रही थी। यह आमतौर पर होने वाली किसी नेता की आमसभा से अलग थी। सही अर्थों में यह एक अनूठी और सच्ची आमसभा थी। इस आमसभा की अध्यक्षता का दायित्व सहारनपुर से पधारे हाथीझूल आम के मजबूत कंधों पर डाला गया था। जिन्हें लोग प्यार से नूरजहां कहकर भी बुलाते थे। यह एक अकेला आम चार-पाँच किलो पर भी भारी था। अनूठे डील-डौल वाला उसका व्यक्तित्व अध्यक्ष पद के सर्वथा अनुकूल और प्रभावशाली था। मंचासीन, कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि सिंदूरी आम मंच की शोभा बढ़ाने के साथ ही चर्चा का भी विषय बने हुए थे।

अध्यक्ष ने आमबाग की महती आमसभा को संबोधित करते हुए कहा – साथियों हम यह बात हमेशा याद रखें कि- हम सबकी, पहली और असली पहचान है कि हम सब आम हैं। हममें कोई भी खास नहीं है।

हमारी दूसरी असल पहचान है कि हम सब एक हड्डी से बने जीव हैं इन्सानों की रीढ़ से कहीं ज्यादा मजबूत हमारी एक ही हड्डी है। यदि हम गुणों की बात करें तो दुनिया में हमारा मीठापन हमारी मूल पहचान है। हम इस दुनिया में अपने गुणों के कारण ही जाने और पहचाने जाते हैं और इसी की बदौलत दुनिया में हमारा मान है।

यह हमारी पहली आमसभा है। अभी तक हमने इन्सानों की जनसभाओं के बारे में सुना था जिसे वे आमसभा कहते नहीं थकते हैं। दरअसल वे अभी तक हमारे नाम का दुरुपयोग कर लोगों को भ्रमित करते रहे हैं।

दुनिया भर में हमारी सैकड़ों जातियाँ-प्रजातियाँ पाई जाती हैं और पता नहीं कितनी ही जंगली और बीजू प्रजातियाँ भी हमारे वृहद परिवार का एक अटूट हिस्सा हैं। किन्तु हमें गर्व है कि हमारी अलग-अलग, जातियां-प्रजातियां होने के बावजूद हम सबकी राशि और गुण एक समान हैं। हम यूं ही फलों के राजा नहीं कहलाते हैं। हम हमारी मिठास और खुशबू के कारण दुनिया में जाने जाते हैं। हमारा इतिहास जितना पुराना है उससे कहीं ज्यादा वह मीठा और सरस है।

हमारे इस वृहद्द परिवार के कुछ सिद्धान्त हैं – पहला सिद्धान्त है कि हम रंगों के आधार पर आपस में कभी कोई भेदभाव नहीं करते हैं। जहां हरा रंग हमारी प्रथम पहचान है वहीं पीला, केसरिया और सिंदूरी रंग हमारे व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा है। हमारे सारे रंग अपने गुणों में समाहित होकर एकरंग हो जाते हैं।

हमारा दूसरा सिद्धान्त है कि हम वर्ण भेद एवं नस्ल भेद में बिल्कुल विश्वास नहीं रखते हैं। क्षेत्रवाद शब्द हमारे शब्दकोश में नहीं है। हमारे बीच जो भी जातियाँ और प्रजातियाँ बनी हैं, वे सभी इन्सानों की बनाई हुई हैं। उन्होंने ही हमें अलग-अलग नाम दिए हैं। किन्तु याद रहे जन्म से हम सभी सिर्फ आम हैं और आम ही रहेंगे। हममें से कोई कभी भूलकर भी खास बनने का विचार नहीं करेगा।

आज की इस आमसभा में देश-दुनिया के अलग-अलग भागों से आए प्रतिनिधि बड़ी संख्या में शामिल हुए हैं। आज हमारे बीच जापान से पधारे मियाजाकी जी एवं गुजरात से आए केसरिया जी की सुगंध सारे वातावरण को महका रही है। कुरनूल से बंगिनापल्ली, महाराष्ट्र से रत्नागिरि, बिहार से चौसा, कर्नाटक से रसपुरी, पश्चिम बंगाल एवं उड़ीसा के प्रतिनिधि हिमसागर, बिहार से मालदा, उत्तरप्रदेश से लंगड़ा एवं दशहरी, लखनऊ से सफेदा, के अलावा फजली, बंबई ग्रीन, नई पीढ़ी के मल्लिका, आम्रपाली, रत्ना, अर्का अरुण, अर्मा पुनीत, अर्का अनमोल, पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद की मशहूर किस्में किशन भोग, हिमसागर नवाबपसंद एवं बेगमपसंद भी इस सभा में शिरकत कर रहे हैं, अपने नाम से अंग्रेज़ियत की महक देने वाले अल्फ़ान्सो (हाफूस) रत्नागिरी महाराष्ट्र से आए एक कीमती आम हैं। दक्षिण भारत से पधारे लोकप्रिय तोतापुरी आम तोते जैसी चोंच के कारण अपनी अलग विशिष्ट पहचान रखते हैं। मंचासीन सिंदूरी जी अपने सौंदर्य के कारण अलग ही चमक रहे हैं। बादामी जी की सादगी देखते ही बनती है। इसके अलावा भी कई किस्में स्थानीय प्रतिनिधि के रूप में आज की आमसभा में शामिल हुई हैं।

हमारे सभी साथी अपनी अलग-अलग मौलिक पहचान रखते हुए भी आखिर में सभी सिर्फ आम हैं। आम ही हमारा धर्म है आम ही हमारा नाम है। हममें से हरेक का अपना स्वाद और अपनी फैन फॉलोइंग है। हम सब आपस में कजिंस हैं। हम आप सभी का खटमिट्ठा, रसभरा स्वागत करते हैं।

यद्यपि हमारा स्वभाव बाल्यपन तक थोड़ा खट्टा होता है किन्तु समय के साथ हम इस खट्टेपन को भूल मिठास को अपना लेते हैं। हालांकि इन्सानों ने हमारे खट्टेपन के भी खूब चटकारे लिए। हमारे कटे पर नमक, मिर्च और विविध मसाले लगाकर फिर हमें तेल में डुबोकर वे उसके चटकारे लेते रहे। हमारा अचार बनाकर और खाकर वे अत्यंत प्रसन्न होते। अपनी जुबान के स्वाद के लिए हमारी चटनी बनाने से भी वे नहीं चूके।

हमारे नाजुक शरीर को आग पर उबालकर अथवा तपा कर वे तरह तरह के पेय एवं खाद्य पदार्थ बनाते हैं। जिसके उन्होंने झोलिया, पना, लौंजी जैसे अजीबोगरीब नामकरण किए हैं। आप सभी जानते हैं कि चतुर इंसान प्रजाति ने हमारा कितना दोहन किया है। उसने हमें बाज़ार दिया और अपने आर्थिक हित साधने के लिए आम के आम और गुठलियों के दाम तक वसूले।

मौसम आए जब हम पर भरपूर यौवन चढ़ता है तब इंसान हमें अपनी ललचाई आँखों से निहारते, हमें पाने के लिए अत्यंत लालायित रहते हैं। हमें देखते ही उनके मुंह में पानी भर आता है। वैसे खुदगर्ज इन्सानों ने हमेशा अपनी पसंद अनुसार या तो हमें चूसा है या फिर काटा है। किन्तु हम चाहे चूसे गए अथवा काटे गए, हमने अपना मूल गुण कभी नहीं छोड़ा और अपनी मिठास से कभी कोई समझौता नहीं किया। जबकि इंसान हमारे गुणों की कद्र करने के बजाए हमेशा हमारा मोल भाव करते रहे हैं।

आम बनते ही हमारी धमनियों में मीठा रस प्रवाहित होने लगता है। जो प्राणियों की रसना पर चढ़कर उन्हें परम आनंद की अनुभूति करवाता है। जब-जब आम चूसा जाता है तब-तब क्या आम और क्या खास सब उसका आनंद उठाते हैं।

लालच में डूबे इन्सानों ने हमें समय से पहले जवान करने के चक्कर में तरह तरह के केमिकल इस्तेमाल करके हमें असमय ही बूढ़ा कर दिया। ऐसे में उन्होंने अपनी प्रजाति का भी ध्यान न रखा। उनसे कीमत लेकर बदले में उन्हें मीठी किन्तु खतरनाक बीमारियाँ दे डालीं। पैसे के लालच में इंसान खुद तो विदेशों की ओर पलायन करने लगे साथ ही हमें भी विदेशों में निर्यात करना शुरू कर दिया।

बड़े बड़े राजा, महाराजा और शंहशाह तक हमें बहुत पसंद करते और हमारी प्रशंसा करते न थकते थे। ये सब इसलिए नहीं था कि हम कुछ खास थे दरअसल हमने अपना आमपन कभी नहीं छोड़ा था। वे एक दूसरे को अक्सर हमें उपहार में देते। हमने कई बार उनके संबंधों के बीच की खाइयों को पाटकर उनके संबंध मधुर बनाने में पुल का काम किया। हम हमारी भरपूर प्रशंसा से भी कभी विचलित न हुए, और अपना मूल स्वभाव कभी नहीं बदला।

समय समय हम पर कई हमले हुए, हमारी नस्लों को बदलने की साजिश भी कुछ कम न हुई। हमने कभी किसी को छोटा या बड़ा न समझा। हम सभी हमेशा वक्त की तराजू पर तोले गए। यदि इन्सानों ने हमें तोलने में भी बेईमानी की हो तो यह उनका कर्म है। उनमें और हममें एक खास अंतर है कि हम अंदर से मीठे हैं और वे सिर्फ बाहर से, जुबान के मीठे हैं। पहले कभी हमारी कीमत हमारी संख्या से लगाई जाती थी किन्तु अब वे दिन हकीकत नहीं रह गए, अब हमारी कीमत हमारे गुणों से तय होती है। किन्तु इन्सानों की कीमत अब गुणों की बजाए संख्या से तय होने लगी है।

हम बेर के आकार से लेकर मेरे जैसे विशाल आकार के भी पाए जाते हैं किन्तु अनेक किस्में होने के बावजूद हमारे बीच कोई बैर नहीं है। यह सुनकर उपस्थित सभी आम मंद-मंद मुस्कुराने लगे और गर्व से भर गए।

हम जहाँ एक ओर कुलीन वर्ग के भोजन की शोभा बने। वहीं दूसरी ओर हम गरीबों की पहुँच से भी कभी बाहर नहीं रहे। हमने कभी किसी को भी हमारी कमी महसूस नहीं होने दी।

यद्यपि हमें कुछ अँग्रेजी नाम देकर हमारी संस्कृति पर हमला भी किया गया। अपने अँग्रेजी नाम के बल पर रौब गालिब करना इन्सानों की दुनिया में चलता होगा आम की दुनिया में यह खास नहीं चल पाता है। ऊपर वाले ने हमें आम बनाया है इसलिए उसके न्याय पर भरोसा रखें और आम ही बने रहें आम से खास बनने की इन्सानों की फ़ितरत से हमेशा दूर रहें। हमारा परम सौभाग्य है कि प्रकृति ने हमें मिठास दी है। अतः हमारा फर्ज़ है कि हम दुनिया में हमेशा मिठास बाँटकर उसका शुक्रिया अदा करें।

©  श्री तीरथ सिंह खरबंदा

ई-मेल : tirath.kharbanda@gmail.com

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈


Please share your Post !

Shares
5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

2 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
जगत सिंह बिष्ट

व्यंग्यकार की कल्पना की उड़ान अद्भुत है। ऐसे सरस व्यंग्य-विनोद आज दुर्लभ हो गए हैं। आज के व्यंग्य में आक्रोश अधिक और सृजनशीलता कम होती जा रही है।

व्यंग्यकार को इस अप्रतिम रचना के लिए साधुवाद। उनका ई-अभिव्यक्ति परिवार में हार्दिक स्वागत है। आशा है, वे इसी तरह सुधि पाठकों को रस विभोर करते रहेंगे।

Tirath Singh

आत्मीय आभार सर 🙏