डॉ जसप्रीत कौर फ़ – लक

☆ साक्षात्कार – प्रतिष्ठित हिन्दी कवयित्री एवं शिक्षिका डॉ ज्योति खन्ना जी से साक्षात्कार ☆  डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक 

(साक्षात्कार – किसी व्यक्ति से की गयी बात चीत का सिलसिला मात्र नहीं इस में अनुभव का पिटारा एवम किसी के व्यक्तित्व का जीवंत चित्रण होता है एक मधुरिम यात्रा-वृत्तांत भी होता है जिस से बहुत कुछ सीखने का अवसर होता है।)

हिन्दी के सुधी पाठकों के लिये-प्रतिष्ठित हिन्दी कवयित्री एवं शिक्षिका डॉ ज्योति खन्ना जी से साक्षात्कार के प्रमुख अंश:-

*साक्षात्कार एक कवि से* आज हम प्रतिभाशाली कवयित्री श्री मति ज्योति खन्ना जी से उन के साहित्यिक सफ़र के बारे में बातचीत कर रहे हैं। वह अत्यंत सेवाभावी, व्यवहार कुशल, मृदुल भाषी, सुयोग्य शिक्षिका, निर्भीक व्यक्तित्व की स्वामिनी हैं। उन की कविताओं में समाज का जीवन्त चित्रण, अध्यात्मिकता का रंग, नारी संवेदनाओं का मर्म विविधता, अद्भुत आकर्षण सौंदर्य एवं गहराई है। उन की कविताएँ कल्पना पर ही आधारित नहीं हैं बल्कि जीवन के यथार्थ से संबंधित हैं।

वह होशियारपुर की पृष्ठ भूमि से आती हैं उन के चार काव्य संग्रह, दो साँझा काव्य संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। आइये ज्योति जी से बातचीत का सिलसिला कुछ इस प्रकार रहा —

  1. ज्योति जी, आप होशियारपुर से संबंध रखती हैं आप होशियारपुर की साहित्यक पृष्ठ भूमि के बारे में एवं अपना संझिप्त परिचय देते हुए हमारे पाठकों को बताइये आपका साहित्य के क्षेत्र में कब और कैसे आना हुआ?

उत्तर: हाँ जी, जहाँ तक होशियारपुर की बात है होशियारपुर हिमाचल का अग्रद्वार माना जाता है देवभूमि की शुरुआत यहीं से होती है। राजनीतिक स्तर / धार्मिक स्तर पर सांस्कृतिक स्तर पर भौगोलिक स्तर पर होशियारपुर का महत्व बहुत अधिक है। यदि साहित्य क्षेत्र में बात करें तो होशियारपुर ने बड़े-बड़े कवियों, लेखकों, दिग्गजों को जन्म दिया है जिनमें डॉक्टर अरविंद पराशर जी ( सांस्कृति भाषा) का नाम प्रमुख रूप से लेना चाहूँगी वे प्रकांड पंडित हैं। इनके सानिध्य में बैठकर हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। विशेष रूप से उल्लेख करना चाहूँगी ‘कशिश’ होशियारपुरी जी (उर्दू शायर ) का यदि मैं यह कहूँ कि ‘कशिश’ होशियारपुरी जी के नाम से होशियारपुर जाना जाता है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कशिश जी की ग़ज़लों में एक विशेष कशिश है। प्रतिष्ठित साहित्यकार धर्मपाल साहिल जी ( हिन्दी भाषा) का उल्लेख किए बिना मैं इस चर्चा को अधूरा समझती हूँ। उनके लेखनी से सदैव प्रभावित रही हूँ। उनका साहित्य प्रेरणा स्रोत है। ऐसे ही कई अन्य कवि एवं लेखक हैं जिन्होंने होशियारपुर की भूमि पर जन्म लिया है और साहित्य क्षेत्र में स्वयं को अग्रसर किया है। यह होशियारपुर भूमि का ही आशीर्वाद है।

जहाँ तक मेरे परिचय की बात है तो मैं त्याग और ममता की गोद में पली बढ़ी एवं संघर्षमय जीवन जीते माता-पिता को देखा। माता साईंदास स्कूल जालन्धर में अध्यापन के गौरवमयी पद से सेवानिवृत्त हुईं हैं। पिताजी भी कम नहीं है पीएसपीसीएल में एक गरिमापूर्ण पद पर वे भी आसीन रहे वहीं से सेवानिवृत्त हुए। ईमानदारी उनका संबल रहा और बस उन्हीं को देखते हुए मैं आगे बढ़ती रही और कर्म क्षेत्र में चलती रही। उनका आशीर्वाद मेरे साथ है। डी ए वी संस्थाओं में पढ़ी, अध्यापक गण में देखूं तो एक अद्भुत सहचर्य मुझे मिला अध्यापक गण का आशीर्वाद मिला एक से बढ़कर एक अच्छे अध्यापक मिले जिन्हें गुरु की संख्या दी जाए तो बिल्कुल सही रहेगा। मानव खन्ना जी से मेरा विवाह हुआ। पुत्र रत्न गौरीश प्राप्त हुआ। अध्यापन क्षेत्र में भी कार्य किया है और आज मैं शिक्षा के एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्यभार को वहन कर रही हूँ। मध्यमवर्गीय परिवार में जन्म लिया। कर्मठ जीवन जीया। मैं अपना सारा श्रेय अपने माता-पिता को देना चाहती हूँ। आज मैं जो भी हूँ उन्हीं की बदौलत हूँ।

शिक्षा की बात करूँ तो – MA (HINDI, SKT, ENGLISH), B.ED, M.ED, PGDDT, PHD IN LINGUISTICS किया जिसमें श्रेय पिता के साथ साथ पति मानव खन्ना जी को भी जाता है।

इसी के साथ नमन करते हुए मैं अपने पीएचडी के गुरु जी साहित्य रत्न अवार्डी स्वर्गीय श्री बी एम भल्ला जी (पठानकोट)का वह वाक्य याद आता है वे कहा करते थे कि “पीएचडी की डिग्री तेरी नहीं है ज्योति, पीएचडी की डिग्री तो तुम्हारे पति को मिलनी चाहिए back bone बनकर जितनी वे मेहनत करवा रहे हैं ना तुम्हारे साथ प्रमाण पत्र तो उन्हे भी मिलना चाहिए। “मुझे आज भी उनके वह शब्द याद आते हैं सच में मुझे अध्यापकगण के रूप में गुरु मिले और गुरुओं ने मेरा मार्गदर्शन किया।

मेरा परिचय बस ये सब ही हैं।

  1. आप किस कविता को सर्व श्रेष्ठ मानती है जिसमें लेखक के निजी अनुभव हों, अभिव्यक्ति हो या उस कविता को जिसमें जन मानस की पीड़ा भी शामिल हो ?

उत्तर: जसप्रीत जी, मैं मानती हूँ कि कविता संवेदनशील मन के भाव ही होते हैं जो शब्दों के माध्यम से एक हृदय से दूसरे हृदय तक सीधे प्रत्यक्ष रूप में पहुँच जाते हैं। कविता की रचना ही कुछ ऐसी होनी चाहिए कि वह जनमानस की पीड़ा को महसूस कर सके, उसका अनुभव कर सके तो ऐसी कविता कवि के निजी अनुभवों से निकलते हुए समष्टिगत की ओर चली जाए, अतः व्यक्तिगत से समष्टिगत की ओर। मेरा मानना यही है यही काव्य का सौंदर्य है

अनुभूति, भाव, रस, शब्द से मिलकर जो आनंद रस की धार बहे वही काव्य है।

  1. लेखन की अन्य कई विधाएँ हैं आपने कविता को ही क्यों चुना? कविता में किस चीज़ की प्रधानता होनी चाहिए विचार की या भावुकता की — क्या कहना चाहेंगी ?

उत्तर: आपने सही कहा कि हिंदी साहित्य की कई विधाएँ हैं नाटक, उपन्यास, एकांकी, लघु कथा आदि हैं किन्तु मैंने काव्य रचना का चयन किया इसका कारण यह है कि काव्य रचना संवेदनशील हृदय ही कर सकता है जो दिल से सोचता है तो ऐसे भाव जो दिल से दिल तक प्रत्यक्ष रूप में पहुँच जाएँ वही काव्य है। जिसमें भावों की प्रधानता एवं अनुभूतियां होती हैं। कवि जनमानस के जीवन को जीता है, स्वयं को उसमें देखता है और उन सब को स्वयं में देखता है जब ये भाव, साक्षी अनुभूति महसूस करने की भावना आ जाती है अपने अंदर दूसरों को देखना दूसरों के अंदर स्वयं को देखना तभी काव्य का सृजन होता है इसलिए मुझे काव्य लिखना अधिक पसंद है और निश्चित रूप से काव्य में भावों की ही प्रधानता होती है।

  1. साहित्यिक संस्थाओं एवं हिन्दी संस्थानों की साहित्य के क्षेत्र में जो भूमिका है उन के बारे में आप के क्या विचार हैं?

उत्तर: जहाँ तक साहित्यिक संस्थाएं हैं इनका मुख्य उद्देश्य भाषा का प्रचार-प्रसार करना ही है। परंतु वर्तमान समय में साहित्यिक संस्थाओं की जो भूमिका है वह अच्छे उद्देश्य से आरंभ तो होती है लेकिन थोड़ी दूरी पर जाकर निजत्व पर उनकी समाप्ति हो जाती है। अच्छी साहित्यिक संस्थाएं जब उनका नव निर्माण होता है तो संपादक-संपादिकाएं या कह लें वरिष्ठ जन बहुत ही उत्साह से आगे बढ़ते हैं लेकिन थोड़ी दूरी तक चलकर उनमें स्वार्थ की भावना आ जाती है कि मैं ही सर्वश्रेष्ठ हूँ। जब ऐसा भाव उनके मन में आता है तो निश्चित रूप से जो साहित्यिक संस्था है उसका हनन हो जाता है, उसका विघटन हो जाता है। बुद्धिजीवी अपने अनुसार संस्था चलाना चाहते हैं जिसमें कहीं ना कहीं भाषा व साहित्य का प्रचार-प्रसार जो है वह लक्ष्य पीछे छूट जाता है। मेरे हिसाब से आजकल की जो संस्थाएं हैं ऐसे ही चल रही हैं उनका निजीकरण हो रहा है और स्वार्थ की होड़ बढ़ रही है लेकिन इतना है कि यदि साहित्यिक संस्थाएं हैं भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए निस्वार्थ भाव से आगे आएं तो निश्चित रूप से ये साहित्यिक संस्थाएं भाषा को जीवन प्रदान कर सकती हैं और ये भाषा जीवन का संबल बन सकती हैं। इनकी बहुत अहम भूमिका है।

  1. आप शिक्षा प्रणाली के गरिमामयी पद पर होने के साथ एक कवयित्री भी हैं। आप समाज में दोहरी भूमिका निभाते हुए इतने भाग दौड़ के जीवन में अपने लेखन में कैसे सामंजस्य स्थापित कर पाती हैं?

उत्तर: जहाँ तक मेरा मानना है कि काव्य लिखने के लिए समय कभी बाधक नहीं बनता, काव्य रूह की भूख है, आप कहीं भी खड़े हैं मन में भाव आ गया है तो हृदय काव्य सृजन करना आरंभ कर देता है, आप अगर मेरी बात करें तो मैं एक साथ छह-छह संस्थाओं से संबंधित हूँ, जब मैं सामाजिक तौर पर विचरण करती हूँ, अलग-अलग स्तरों के लोगों से मिलती हूँ। उनकी विचारधारा मेरे सामने आती है। मैं उनके विचारों का एकत्रीकरण करती हूँ, बस फिर अपने भावों को काव्य का रूप देने का प्रयत्न करती हूँ, जहाँ तक परिवार की मदद का प्रश्न आता है तो मेरे परिवार का पूर्ण सहयोग मिलता है, समय अपने आप मिल जाता है। बस समय को सुनियोजित करना पड़ता है।

  1. आप ने कविता के स्वरूप को बदलते हुए देखा है। पहले की कवितायें और आज की कविताओं में क्या अन्तर महसूस करती हैं?

उत्तर: जी बिल्कुल, आपने सही कहा, जो पहले का काव्य सृजन था और आज का जो काव्य सृजन है इसमें बहुत अंतर है, पहले यदि हम पौराणिक समय की बात करें तो दोहा, सोरठा, छंद, चौपाई और या यूँ कहें कि छंदोबद्ध रचनाएं हुआ करती थीं। आप तुलसीकृत रामचरितमानस देखें या अन्य कोई पवित्र ग्रंथ देखें तो बस छंदों, चौपाइयों, पद्यों में ही विभाजित है, परंतु इसके विपरीत जो वर्तमान समय में काव्य सृजन हो रहा है कोई नियम नहीं है, कोई बंधन नहीं है, भरत मुनि जी ने बहुत ही सुंदर सटीक कहा है कि काव्य ब्रह्मानंद सहोदर है, ऐसा काव्य जो आनंद की प्रतीति कराता है वही काव्य कहलाता है। सरल भाषा में लिखी कविता जनमानस के हृदय तक आसानी से पहुँच जाती है। समय के साथ कविता का स्वरूप बदलता रहा है।

  1. आप किसी विशेष उपलब्धि के बारे में या अपनी किताबों के संदर्भ में कुछ कहना चाहें तो हमारे पाठकों को बतायें?

उत्तर: जहाँ तक उपलब्धि का प्रश्न है साधारण तौर पर अपने कर्म के बाद हम जो फल प्राप्त करते हैं प्रमाण पत्र या trophies के तौर पर उसे उपलब्धि कहा जाता है। ठीक है, मेरी सोच कुछ और है। मैं यहाँ कहना चाहती हूँ कि उपलब्धि तो अभी प्राप्त ही नहीं हुई है। अभी तो आगे बढ़ना है, अभी तो साहित्य के पथ पर क़दम रखा है। मेरी छः किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं, व्याकरण पुस्तकें कक्षा एक से आठ तक के पाठ्यक्रम में शामिल हैं। समाचार पत्रों हेतु लेखन चलता रहता है, समाज सेवा, एन जी ओ या अन्य किसी भी आधार पर मुझे राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समाज सेवा करते हुए ज़िला स्तर पर लेखन प्रतियोगिताओं में भाग लेने के बाद बेस्ट प्रिंसीपल, डायनैमिक प्रिन्सिपल अवॉर्ड एवं कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा मैं सम्मानित हो चुकी हूँ। परंतु मैं इसे उपलब्धि नहीं कहूँगी। जो आपके आगे आने वाले जीवन में सहायक हो सकती है, वही विशेष उपलब्धि है। बाकी साधारण सफलताएँ हैं। जो आपके माता-पिता की आँखों में चमक के रूप में दिख जाए, वही विशेष उपलब्धि है।

  1. कोई ऐसा साहित्यिक अविस्मरणीय पल जो आप को आज भी उत्साहित, हर्षित, रोमांचित करता है।

उत्तर: एक ऐसा पल जिसमें आप हर्षित, रोमांचित, प्रभावित भी होते हैं। वही जीवन का स्वर्णिम पल होता है जिसमें तीनों भाव इकट्ठे होते हैं। मुझे एक प्रसंग याद आ रहा है जब मैं DAV college में MA कर रही थी। महाविद्यालय से वार्षिक पत्रिका निकलती थी-‘The Ravi’ उसके editor का चयन होना था। बहुत सुंदर सुंदर प्रविष्टियाँ आईं पत्र लेखन आए जिसमें से चुनाव करना अत्यंत कठिन हो गया management के लिए principal sir ने सबको नीचे बुलाया खुले मैदान में तो हिंदी विभाग की बारी आयी तो professor KK Badhal जी से पूछा गया हाँ जी कौन रहेंगे संपादन कार्य के लिए आगे आयें।

Badyal sir के लिए भी थोड़ी समस्या आ गई कि सबकी प्रविष्टियाँ अति सुंदर एवं प्रभावशाली रही तो उन्होंने चुनाव का एक नया ढंग तय किया गया कि जो on the spot कविता लेखन करेगा उसका चयन हो जाएगा। अब जैसे ही मेरी बारी आई हड़बड़ाहट में कबीर दास जी का एक दोहा मेरे ध्यान में आया वही बोल दिया-

 “पानी केरा बुदबुदा असमानस की ज़ात

 देखत ही छिप जाएगा ज्यों तारा प्रभात। “

मैंने इसका सरलार्थ कर दिया कि जीवन क्षण भंगुर है रेत की तरह मुट्ठी में समाया है रेत फिसलती जाती है, निकलती जाती है बस इसी आधार पर मेरा पत्रिका के लिए संपादिका के रूप में चयन हो गया तो ये पल मुझे कभी भूलता नहीं है। यह ऐसा क्षण था जो मुझे प्रभावित, रोमांचित, हर्षित भी करता था। यह सदैव मेरे लिए अविस्मरणीय रहेगा।

  1. क्या आपको कविता समाज से अलग करती है? कविता का समाज पर क्या प्रभाव महसूस करती हैं ? क्या आज के साहित्य में समाज को बदलने की सम्भावनाएं मौजूद हैं?

उत्तर: जी, आपका प्रश्न कई प्रश्नों को समाहित किए हुए है कविता मुझे समाज से अलग नहीं करती क्योंकि मैं भी समाज का हिस्सा हूँ। समाज में हम तरह-तरह के लोगों को देखते हैं सोचते हैं भावों का निर्माण करते हैं। ऐसे जो दृश्यमान होते हैं ऐसे वार्तालाप ऐसे विचार हैं तो कविता निश्चित रूप से मुझे समाज से अलग नहीं करती क्योंकि एक जो संवेदनशील हृदय है समाज में घूमते-घुमाते ही परिस्थितियां देख के ही वो वैसे शब्द निर्माण करता है। अंततः आपका जो प्रश्न है कि क्या कविता में इतनी क्षमता है कि समाज को बदल दे, जी हाँ, बिल्कुल है। यदि कविता सत्य अर्थ पर लिखी गई एवं भाव प्रधान है तो निसंदेह कविता हृदय से हृदय तक पहुंचती है। हम बिना शक के संशय रहित होकर कह सकते हैं कि कविता समाज को बदलने की क्षमता रखती है।

  1. साहित्य के क्षेत्र में आधुनिक मीडिया प्रणाली के बढ़ते प्रभाव को आप किस संदर्भ में देखती हैं। इस के योगदान को आप कितना सार्थक मानती है?

उत्तर: निसंदेह जसप्रीत जी, मीडिया का प्रभाव लेखन पर सीधे-सीधे पड़ा है। चाहे बात साहित्य की करें या अन्य किसी क्षेत्र की। प्रत्यक्ष तौर पर हाँ अगर इसको हम दोतरफा रखें पक्ष में या विपक्ष में तो अगर पक्ष में बात करूँ तो गुणवत्ता एवं उपयोगिता बढ़ी है और नए लेखकों को आसानी से आगे बढ़ने का मौका मिला है, कई मंच नए खुले हैं, ऑनलाइन बैठकें एवं गोष्ठियाँ होती हैं और साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए मीडिया काफी हद तक श्रेयस्कर हो गया है और हित में है, दूसरी तरफ मीडिया का नेगेटिव प्रभाव भी है। पॉजिटिव नेगेटिव तो चलता ही रहेगा। पक्ष में भी और विपक्ष में भी।

  1. अहिन्दी भाषी क्षेत्र में हिन्दी भाषा की सामर्थ्यता के विषय में आपका क्या दृष्टिकोण है? पंजाब में हिन्दी के प्रचार प्रसार की क्या सम्भावनाएँ हैं?

उत्तर: जहाँ तक अहिंदी भाषिक क्षेत्रों में हिंदी भाषा की सामर्थ्यता का सवाल है मुझे लगता है संस्थाओं को साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते रहना चाहिए। हिन्दी भाषा को रोज़गार से जोड़कर भी भाषा को समृद्ध करने में योगदान किया जा सकता है। हिन्दी भाषा ऐसी समृद्ध भाषा है जो भारत की अखंडता को एक सूत्र में पिरोकर रखने में सक्षम है। इस की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए इसे भावनात्मक तौर से भी अपनाना चाहिए। संस्थानों को बड़े-बड़े वखान करने की जगह इसे जनमानस तक पहुँचाकर लोकप्रिय बनाने का प्रयास करना चाहिये और सामाजिक संस्थानों को भी इसके प्रचार प्रसार के लिए नए अवसर तलाश करते रहना चाहिए।

पंजाब में हिन्दी द्वितीय स्तर पर है विद्यालयों में अधिकाधिक हिंदी का प्रयोग, लेखन कार्यविधियाँ, वाचन, साहित्यिक कार्यक्रम आदि की सहायता से ही हिन्दी का प्रसार हो सकता है। मैं हिन्दी भाषा का भविष्य उज्जवल देखती हूँ।

  1. वर्तमान समय में भावी पीढ़ी को अन्य बहुत सी कलायें अपनी ओर आकर्षित करती हैं। क्या ऐसे में उन की साहित्य के प्रति गंभीरता है? क्या आज की पीढ़ी साहित्य से दूर तो नहीं होती जा रही? इस संदर्भ में आप क्या कहना चाहेंगी।

उत्तर: सत्य है कि वर्तमान पीढ़ी के पास बहुत से विकल्प हैं, साहित्य के प्रति उनका रूझान भी अलग हो सकता है। कुछ लोग साहित्य पठन, लेखन में रुचि रखते हैं, जबकि कुछ अन्य कलाओं में भी रुचि रखते हैं।

लेकिन यह ज़रूरी नहीं है कि आज की पीढ़ी साहित्य से दूर हो रही है मैंने ऐसे लोगों को भी देखा है जो साहित्य पढ़कर चित्रकला से उसे कागज़ पर उकेर लेते हैं साहित्य के नए रूप, जैसे कि डिजिटल साहित्य और सोशल मीडिया पर उसे प्रदर्शित करते हैं, निर्भर करता है कि उनकी रूचि और रूझान की दिशा क्या है, परवरिश कैसी है। अन्य कलायें उन्हें आर्थिक तौर से सशक्त बना सकती हैं मगर साहित्य उन्हें जीवन के अनुभवों से अवगत करवा सकता है। मेरा तो अनुभव कहता है कि वो साहित्य से ज़रूर जुड़ें।

  1. पुराने लेखकों के मुकाबले इस समय के लेखक के सामने क्या अधिक चुनौतियाँ हैं ? ख़ास कर मेरा इशारा नारी कवयित्रियों की ओर है इस विषय पर आप क्या टिप्पणी करना चाहेंगी।

उत्तर: जी सही कहा आपने चुनौतियाँ तो हर समय में रही हैं। जहाँ तक नारी कवयित्रियों की बात है, मानसिक एवं शारीरिक शोषण की चर्चाएँ तो आपने भी सुनी होंगी। सामाजिक और सांस्कृतिक बँधन, अधिकार व मान्यता प्राप्त करने में समस्या रही है। लेकिन वर्तमान समय में नारी कवयित्रियों ने अपने काव्य अपनी लेखनी की परिपक्वता से अपनी आवाज़ दमदार की है और समाज में अपनी छवि प्रगाढ़ की है।

देखिए, कठिनता तो है पर नारी शक्ति भी कम नहीं। नारी सशक्तिकरण है उनकी लेखनी ने हर विषय हर चुनौती को पार कर लिया है।

  1. ज्योति जी एक आख़िरी सवाल -आप के पास साहित्य का अनुभव है। साहित्य के क्षेत्र में जो नये लिखने वाले आ रहे हैं। आप उन्हें क्या संदेश देना चाहेंगी।

उत्तर: मेरा नये लिखने वालों से विनम्र निवेदन यही है कि मात्र धनार्जन के लिए ना लिखें, सामाजिक परिप्रेक्ष्य में रह कर अपनी लेखनी को नई दिशा प्रदान करें। अपनी रचनाओं से सिर्फ़ प्रसिद्धि प्रख्याति पाने के लिए इधर उधर से, होड़ में या एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए रचनाएँ ना लिखें। महान साहित्यकारों का साहित्य पढ़ें। चाहे कम लिखें, शिक्षाप्रद लिखें, राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देने का प्रयास करें।

 

 डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक

संपर्क – मकान न.-11 सैक्टर 1-A गुरू ग्यान विहार, डुगरी, लुधियाना, पंजाब – 141003 फोन नं – 9646863733 ई मेल – jaspreetkaurfalak@gmail.com

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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