श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी की  गौरैया दिवस पर एक भावपूर्ण रचना  “गौरैया दिवस । ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 79 ☆ गौरैया दिवस विशेष – संकल्प से सिद्धि ☆

नील गगन की छांव में,

सघन बृक्ष की छांव में।

वो तिनका तिनका चुनती थी,

सुन्दर नीड़ बनाने का

वो ताना बाना बुनती थी।

दिनभर कठिन परिश्रम करते,

हार नहीं मानी थी वह।

अपना घर बार बसाने का,

दृढनिश्चय मन में ठानी थी वह।।1।।

 

जाड़े वर्षा  में भीगी थी,

गर्मी तन मन झुलसाती थी।

पर राह डिगा न सकी उसकी,

सुन्दर घोंसला बनाती थी।

सपनों से प्यारा नीड़ देख,

वह मन ही मन मुस्काई थी।

बैठ घोंसलों के भीतर ,

वह राग-विहाग सुनाई थी।।2।।

 

उस नीड़ के भीतर उसने दो,

बच्चे सुंदर बच्चे जाये थे।

उन्मुक्त गगन में उड़ने की,

ले चाह पंख फैलाए थे।

पर हाय विधाता! क्या लिखा भाग्य में,

ना जाने कैसा दिन आया।

नीड़ उजाड़ा बच्चे मारा,

बिल्ले ने तांडव दिखलाया।

पंख नोच खा गया उन्हें,

फिर खों-खों करता चिल्लाया।।३।।

 

घर चमन उजड़नें की पीड़ा,

उसके मन में समाई थी ।

वो  छोटी नीरीह प्राणी ,

कुछ भी ना कर पाई थी।

बच्चों की अल्पायु मौत पर,

उसकी ममता रोई थी।

कुछ करना बस में न था उसके,

वह अपनी सुध बुध खोइ थी।

उन दुखी पलों की बन साक्षी ,

रो रो कर सांझ बिहान किया,

टूटे नीड़ से ममता छूटी,

टूटा दिल ले प्रस्थान किया।4।।

 

उस निरीह प्राणी को देखो,

उसका एक ही नारा है।

संकल्प से सिद्धि मिलती है,

सबका यही सहारा है।

जाते जाते संदेश दे गई,

उम्मीद का दामन थाम लिया।

उन्मुक्त गगन में उड़ने का ,

उसने नव संकल्प लिया।

दुख आता है दुख जाता है,

पर हिम्मत अपनी मत हारो।

उम्मीद का दामन मत छोड़ो

फिर उडो़ गगन में पंख पसारो।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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