श्री जयेश वर्मा

(श्री जयेश कुमार वर्मा जी  बैंक ऑफ़ बरोडा (देना बैंक) से वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। हम अपने पाठकों से आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता बुधुआ…।)

☆ कविता  ☆ बुधुआ… ☆

बुधुआ एक नाम नहीँ है एक जीवंत अर्थ है,

भारत का लिखें इतिहास, बनाये

कितने ही शिला लेख,

यह नाम हो हर जगह,

नीचे किसी कोने ज़रूरी है,

बुधुआ पाया जाता आज भी

सदियोँ से ये मरता नहीं है,

जैसा पहले था मन क्रम बचन से,

मूक परिश्रमी, वाचाल नही है,

बुधुआ आज भी है वैसा ही है,

सदियों बाद भी वैसा ही है,

जो खाली पेट रोटी की आस में

तोड़े अपने हाड़, दिन रात,

कहता कुछ नहीँ है,

ऐसे नामवर की चाह

हिंदुस्तान में हर कहीँ है,

देश का कोई भी हो प्रांत, शहर,

गाँव,नाम अलग हो भले,

अर्थ सहित बुधुआ वहीं हैं,

हर कोई चाहता उसे,

पर वो लोकप्रिय नहीं है,

वो एक किसान, हम्माल है,

खेतिहर मजदूर, मज़दूर,

हर सृजन का आरंभ वही है,

कहते उसे, चाहकर सब जन

उसको बुधुआ ही, खेती हो किसानी,

कोई हो काम, आरम्भ बुधुआ से ही है,

सभी चाहते रहे वैसा ही, सदियों से जैसा है,

बहुत हुए प्रयास

सुधरे इसकी हालत,

बने वो भी आम आदमी सा,

नही रहे हमेशा सा दबा कुचला,

पर कमोबेश आज भी हालात वहीँ है,

बुधुआ बुधुआ है, वो बुधुआ है,

हिंदुस्तानी समाज का अंग,

उसके दैनिक जीवन का  पायदान वही है

बुधुआ समाज के,

सदियों से कुत्सित प्रयासों का

प्रतिफल ही है,

जिसका स्वार्थ, ना बदलने देता नाम उसे

इसलिए आज भी बुधुआ यहीं कहीं है,

देश में बुधुआ हर जगह, हर कहीं है,

बुधुआ……

 

©  जयेश वर्मा

संपर्क :  94 इंद्रपुरी कॉलोनी, ग्वारीघाट रोड, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
वर्तमान में – खराड़ी,  पुणे (महाराष्ट्र)
मो 7746001236

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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