अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष 

श्रीमती तृप्ति रक्षा  

( ई – अभिव्यक्ति  में   श्रीमती तृप्ति रक्षा जी  का हार्दिक स्वागत है । आप शिक्षिका हैं एवं आपके वेब पोर्टल पर कवितायेँ प्रकाशित होती रहती हैं। संगीत, पुस्तकें पढ़ना एवं सामाजिक कार्यों में विशेष अभिरुचि है।  विचार- स्त्री हूँ स्त्री के साथ खड़ी हूँ।  आज  प्रस्तुत है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर  आपकी विशेष कविता  “हाँ, मैं  स्त्री हूँ!” )

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष  – हाँ, मैं स्त्री हूँ! 

हाँ ,मैं  स्त्री हूँ !

तभी तो भूल जाती हूँ ,

बार -बार शब्दों के उन तीक्ष्ण बाणों को,

और क्षण भर मौन रहकर समेट लेती हूं,

खुद को रसोईघर  के कोने में ।

 

हाँ ,हूँ मैं स्त्री !

तभी तो साथ देती हूं हर बार,

तुम्हारे घर से निकाल देने की बात पर भी,

आमंत्रण देती  हूं साथ निभाने का  हर सुख-दुख में,

क्योंकि मेरा अस्तित्व है ज़िन्दा,

तुम्हारे साथ होने में ।

 

हूँ मैं स्त्री!

इतनी संवेदना तो है,कि भूल जाती हूं ,

कैसे छलते रहे हर-बार तुम मुझे और मैं मुस्कुरा कर माफ कर देती हूं,

डर है मुझे तुम्हारा प्यार खोने में।

 

हाँ, मैं वही स्त्री हूँ!

जो हर पल इक आस‌ में जीती है,

सुनहरे सपने सजाती है

जिसे पूरा होने के पहले हीं ,

तुम तोड़ देते हो और बुनते हो इक मकड़जाल

अपने झूठे रसूख को बचाने में ।

 

हाँ ,मैं  स्त्री हूँ !

जिसे परवाह नहीं अपने हाथों के छालों की,

वो तो बस तुम्हारे मुस्कान की प्रतीक्षा में है ,

पर कहां समझ पाते हो कि ये छोटी सी फरमाइश भी पूरी होती है,

तुम्हारे साथ -साथ

हँसने और रोने में।

 

हाँ मैं स्त्री हूँ

जो ढेर सारा जहर पीकर भी,

सोलह श्रृंगार कर इंतजार करती है

पर हाय! ये आखिरी ख्वाहिश भी तुम भूल जाते हो,

जिसे मैं ज़िन्दा रखती हूँ,

गले में मंगलसूत्र के होने में।

क्योंकि मैं एक स्त्री हूँ ।

तुम हो, तो मैं ज़िन्दा हूँ ।।

 

© तृप्ति रक्षा

सिवान बिहार

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष –

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