॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #5 (66-70) ॥ ☆

 

जागो सुधी, रात गई प्रातः आया, है धाता ने जगभार तुम दो पै डाला

एक तो पिता आके जो सजग नित हैं, और आप धुर संग में जिसने सम्हाला॥66।

 

निशि नीदं में आपसे हो उपेक्षित, खण्डित सी जिस चंद्र सँग तब थी मुख श्री

वह भरि उसे तज प्रतीची में डूबा उठा नाथ अपनी गहो आनन श्री ॥ 67॥

 

नयनों औं कमलों के सॅग सॅग उन्मलिन में समता सुन्दरता की आभा बिखराइये

नेत्रों की पुतलियों को भ्रमरों सा कमलों में संचालित करते अब झटसे उठ जाइये ।

 

तब मुख सौरभ का भूखा प्रातः समीर वृक्षों के पुष्पों की सौरभ चुराता है

सूरज की किरणों को देख खिले कमलों संग खेल खेलता है प्रीति उत्सव मनाता है

 

वृक्षों के नवल ताम्र पव्तो पर ओस बिन्दु, निर्मल मणिमुक्ता सी शोभा बरसाते है

आपके ललास लाल अधरों पर रदन-पंक्ति शोभित मनमोहिनी मुस्कान से सुहाते है॥ 70 ॥

 

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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