श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “रायता…“।)
अभी अभी # 692 ⇒ रायता
श्री प्रदीप शर्मा
एक वक्त था, जब हम रिसेप्शन में नहीं, किसी के यहाँ जीमने जाते थे। हमें प्रयोजन से कोई मतलब नहीं होता था, बस कहाँ जीमने जाना है, इससे ही काम चल जाता था। किसी विप्र को भोजन का न्यौता मिलने पर वह सूँघने अथवा चखने नहीं जाता था, वह जीमने जाता था, और तबीयत से जीमकर आता था।
पत्तल के साथ जब दोने रखे जाते थे, तब दोनों की संख्या से ही पता चल जाता था कि आलू की रसेदार सब्जी के साथ खीर और रायता है कि नहीं। पत्तल और तीनों दोनों को, हवा से बचाने की ज़िम्मेदारी को बखूबी निभाते हुए, किसी मोटी गर्म पूड़ी और लड्डू को पेपर वेट की तरह इस्तेमाल किया जाता था। आँधी, तूफान और बरसात के अलावा हर मौसम में पत्तल-दोने, परोसे हुए पकवानों के साथ सुरक्षित हाथों में होती थी।।
जब तक खीर नहीं परोसी जाती, जीमने की प्रक्रिया आरंभ नहीं होती थी। केवल एक लड्डू परोसने पर उसे दो लड्डू धरने की हिदायत दी जाती थी। सेंव और नुक्ती पत्तल के किसी भी कोने में हों, उनका आपस में मिलन हो ही जाता था। खीर के बारे में, परोसने वाले को, स्थायी अनुदेश थे, कि जब भी खीर का दोना खाली देखे, पूछे नहीं, चुपचाप भर जाया करे।
फूटे दोनों की शिकायत आम रहती थी। खीर तो तुरंत उदरस्थ हो जाती थी, रायते को उपसंहार के लिए रखा जाता था। किसे पता था कि रसेदार सब्जी और खीर भले ही ढुल जाए, आसमान सर पर टूटकर नहीं गिरने वाला, लेकिन अगर एक बार रायता फैल गया, तो कुछ न कुछ तो होने वाला ही है।।
आम तौर से पंगत का रायता बूंदी का रायता होता था। बूंद जो बन गई नुक्ती ! यानी उसी बेसन की बूँदी पर जब चीनी की चाशनी चढ़ जाती थी, तो वह नुक्ती कहलाती थी। नुक्ता-चीनी, नुक्ती वाली चीनी की ही शायद चचेरी बहन लगती है। लेकिन बड़ी कर्कश प्रतीत होती है।
समय के साथ रायते का प्रमोशन हो गया ! यह घरों और पंगत से उठकर बड़ी बड़ी होटलों और प्रीति-भोजों में अपना आसन जमाने लगा। फ्रूट सलाद और कस्टर्ड से जब इसका विवाद होने लगा, तो जगह जगह रायता फैलने लगा। नौबत यहाँ तक आ गई कि जहाँ रायता मौजूद ही नहीं रहता, वहाँ भी रायता फैलने लगा।।
आज रायता, दोनों से निकलकर सुरक्षित कटोरियों में पहुँच गया है, जिसमें न तो दोने की तरह छेद है और न ही किसी आँधी तूफान का डर, लेकिन रायता फैलाने वाले फिर भी रायता फैलाकर चले जाते हैं।
इन दिनों रायता बहुत परेशान है ! घर परिवार हो या राजनीति, इतने सात्विक, स्वास्थ्य-वर्धक आहार को जब लोग व्यवहार में लाकर उसे खाने के बजाए फैलाने लगेंगे, तो वह अपना दायित्व झोल्या अथवा जलजीरा को सौंपकर अपना अस्तित्व ही समाप्त कर देगा। उसकी आप सबसे करबद्ध गुजारिश है कि आप रायता खाएँ ज़रूर, एक नहीं चार-पाँच दोने-कटोरे सूत जाएँ, लेकिन रायता फैलाएं नहीं। उम्मीद है आज के रोज, जब आप बूंदी के लड्डू के साथ रायते का सेवन करेंगे, अनावश्यक रायता फैलाएंगे नहीं।।
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© श्री प्रदीप शर्मा
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