श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “बाल की खाल।)

?अभी अभी # 680 ⇒ बाल की खाल ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

बाल हो या नाखून, हमारे शरीर की ऐसी फसल है, जो जितना काटो, उतनी बढ़ती है। नख शिख वर्णन में कभी इनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। ये रेशमी जुल्फें, ये शरबती आंखें। न जाने क्यूं, नाखून पर किसी शायर की कलम नहीं चली। बालपन से ही इनका हमारा साथ खून का रिश्ता रहता है। खटमल की तरह ये हमारा खून तो नहीं चूसते, लेकिन हमारे शरीर का अभिन्न हिस्सा होने के बावजूद, जब इन पर मनमाने तरीके से चर्बी चढ़ जाती है, अर्थात् ये गाजर घास की तरह बढ़ना शुरू कर देते हैं, तो कैंची से इनके पर कतरना पड़ता है। जिस तरह एक पक्षी के पर कतरने पर दर्द नहीं होता, उसी तरह केश कर्तन भी पीड़ा रहित ही होता है। नाखून के बारे में तो एक पहेली का अक्सर जिक्र होता है, जिसका हल मुश्किल ना होते हुए भी, कुछ लोग, हल खोजते हुए, नाखून से अपना सर खुजाते, देखे जा सकते हैं ;

बीसों का सर काट लिया

ना मारा, ना खून किया ….

बेचारे बाल, हमारी खाल पर ही तो जिंदा हैं। ये खुद किसी को दर्द नहीं देते, परेशान नहीं करते। लेकिन जब इन्हें अनावश्यक तरीके से खींचा जाता है, तो खाल अर्थात् त्वचा को दर्द होता है। बालों को हम बड़े प्यार से सजाते संवारते हैं। एक शायर ने क्या खूब कहा है ;

जुल्फें संवारने से बनेगी ना कोई बात !

उठिये, किसी गरीब की किस्मत संवारिये ..

वह गरीब बेचारा क्या जाने, जुल्फें यूं ही नहीं संवारी जाती, लोमा हेयर ऑयल, केशवर्धक तेल और आलमंड ऑयल से भी जब काम नहीं बनता तो ब्यूटी पार्लर ही एकमात्र विकल्प बचता है। कुछ अभागे गरीब तो हमने ऐसे भी देखे हैं, जिनके चार -चार बाल बच्चे हो गए, सर में बाल बचे नहीं, फिर भी उनके पैंट की हिप पॉकेट में छोटा सा कंघा जरूर मिलेगा।

जब भी कोई लड़की देखे

मेरा दिल दिवाना बोले

ओले ओले ओले ओले।

शायद इसे ही कहते हैं, सर मुंडवाते ही ओले ओले। ।

जो छिद्रान्वेशी होते हैं, बात बात में मीन मेख निकालते हैं, उनकी यह हरकत बाल की खाल निकालने जैसी ही होती है। उन्हें यह समझना चाहिए, सिर्फ सिर के एक बाल को खींचने से खाल को कितना दर्द होता है। दु:शासन जब भरी सभा में पांचाली के केश खींचकर लाया होगा, तो उसे कितना दर्द हुआ होगा। पांचों पांडवों का मन तो किया होगा, इस दु:शासन की खाल खींच लें। तब कहां महात्मा गांधी थे। फिर भी वे मजबूर थे। क्योंकि तब वहां राम राज नहीं धर्म का राज था। और धर्मराज स्वयं जूए में द्रौपदी को हार बैठे थे।

बड़े बड़े बाल रखना, और उनकी देखभाल करना, बच्चों की देखभाल से कम कठिन परिश्रम का काम नहीं होता। आप किसी से उलझो ना उलझो, जुल्फें आपस में ही उलझ जाती हैं। कितने बालमा ऐसे हैं, जिन्होंने किसी की उलझी लट सुलझाई है। उनके आपस के झगड़े तो उनसे सुलझते नहीं, चले हैं किसी की लट सुलझाने। ।

आप बाल की चाहे जितनी खाल निकालें, बाल को कुछ नहीं होगा, लेकिन अगर आपने किसी के बाल को खींचा, तो हो सकता है कोई अपना आपा खो बैठे और काई ऐसी हरकत कर बैठे, जिससे आपकी त्वचा को भारी नुकसान पहुंचे। आगे क्या लिखूं, आप खुद समझदार हो। अपने बालों और नाखूनों का खयाल रखें। कोरोना काल में कुछ लोगों की तो घर में ही हजामत हो गई थी और कुछ बाबा रामदेव बन बैठे थे। नाखून नेल कटर से ही काटें, दांतों से नहीं …!!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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