सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता ☆ सारी धूप साँझ तक… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

अनाज गोदाम में

रहनेवाली

चिड़िया बेखौफ होती है

आश्वस्त भी

कि कभी खत्म न होगा

अन्न भंडार

चलता रहेगा

ये सिलसिला

 

जिन्दगी के दिन में

उम्र की धूप

धूप की उम्र

सिर्फ एक बार

जलवा दिखाती है

 

धूप का सोना

इकट्ठा करता हुआ मनुष्य

कभी

सोच भी नहीं पाता

कि सारी धूप

साँझ तक है

साँझ ने आकर

रुक जाना है

सदा के लिये

 

सोच में यही

चूक हो जाती है

इसी मोड़ पर

सारी कविताएं

मूक हो जाती हैं।।

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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