सुश्री इन्दिरा किसलय
☆ कविता ☆ युद्ध, सैनिक और हम… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆
☆
इतिहास में
युद्ध होते थे
युद्ध हो रहे हैं
युद्ध होते रहेंगे
प्रतिशोध वर्चस्व द्वेष और
शान्ति समाधान के नाम पर
रक्त की नदियां बहती रहेंगी
दिवंगत/दिव्यांग हुये
फौजियों के घर पर
पसरा अकाल सन्नाटा
दर्द और बेबसी
बाँटेगा कौन?
गर्व देशभक्ति एवं झंडे
लहराने का जुनून
दिखाते हुये लोग
लाल कालीन पर
चलनेवाले
ए सी कक्ष से निर्देश देने वाले
नाम की बाजी
मार ले जाते हैं
तब
संख्या बन जाते हैं फौजी !
दुनिया में कुछ भी
एकाकी नहीं है
जंग के समानान्तर चलती हैं
कई बेगुनाह पीढ़ियों की
तबाही
यह श्रृंखला जीत के
नशे में चूर
ब्रह्माण्ड में बहुत दूर
हल्की सी झिलमिल
बिखेरते तारे की तरह
नजर से ओझल ही
रही आती है।
हैरानी है
न आज तक
युद्ध रोक पाये बुद्ध
और न
बुद्ध को रोक पाया
युद्ध !!
☆
© सुश्री इंदिरा किसलय
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈
बहुत सुंदर सामयिक सटीक कविता