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(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)
श्री शारदा दयाल श्रीवास्तव का व्यंग्य संग्रह “ज्ञानगंगा में गधों का आचमन” लोकार्पित ☆ प्रस्तुति – श्री सुरेश पटवा
श्री शारदा दयाल श्रीवास्तव के व्यंग्य संग्रह “ज्ञानगंगा में गधों का आचमन” का लोकार्पण दुष्यंत संग्रहालय में डॉ. साधना बलबटे, की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। मुख्य अतिथि सेवानिवृत्त गृह सचिव, मध्य प्रदेश शासन श्री ओम प्रकाश श्रीवास्तव, सारस्वत अतिथि श्री सुरेश पटवा, संयुक्त सचिव दुष्यंत संग्रहालय और विशिष्ट अतिथि श्री मंगत राम गुप्ता, श्री गोकुल सोनी और श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव रहे।
इस अवसर पर सारस्वत अतिथि सुरेश पटवा ने सर्वप्रथम शारदा दयाल श्रीवास्तव के लेखकीय व्यक्तित्व का परिचय देते हुए कहा कि शारदा दयाल ऊपर से शांत दिखते हैं लेकिन अंदर ज्वालामुखी छुपाए हैं। तभी इनके भीतर से विसंगतियों के विरुद्ध तीखी प्रतिक्रिया निकलती है। वही इनके व्यंग्य को धार प्रदान करती है।
इस अवसर पर शारदा दयाल श्रीवास्तव ने संदर्भित व्यंग्य संग्रह की रचना प्रक्रिया के अनुभव साझा करते हुए “मेरा देश मेरा भेष” व्यंग्य का पाठ अनोखे अंदाज़ में किया। उन्होंने पुस्तक के नामकारण के बारे में बताया कि मुझमें और गधे में कुछ लाक्षणिक समानताएं हैं और मैं भी ज्ञान गंगा में डुबकी लगाता रहता हूँ इसलिए इस पुस्तक का नाम “ज्ञानगंगा में गधों का आचमन” तय पाया गया।
डॉ. साधना बलबटे ने कहा की इस व्यंग्य संग्रह में सामयिक नहीं अपितु वैश्विक परिस्थितियों पर शाश्वत व्यंग्य शामिल हैं। आजकल व्यंग्य में बोथरापन भटकाव अधिक नज़र आता है। इन्होंने अपने व्यंग्य में व्यंजना के माध्यम से साहित्य को ज़िंदा रखा है। ये एक कुशल और कलात्मक व्यंग्यकार हैं। इन्होंने पहली कृति में ही छक्का मारा है।
श्री ओम प्रकाश श्रीवास्तव ने कहा कि आजकल व्यंग्य लिखना खतरे से खाली नहीं है। लेकिन शारदा दयाल श्रीवास्तव ने सामयिक और शाश्वत विषयों पर व्यंग्य और हास्य का अद्भुत मिश्रण किया है। जो इनकी पुस्तक को अनोखा बनाती है।
श्री गोकुल सोनी ने कहा कि व्यंग्य समाज की विसंगत एवं रुग्ण मानसिकता के लिए “शुगर कोटेड” कड़वी दवाई की तरह है। वास्तव में जो व्यंग्य तात्कालिक परिस्थितियों पर लिखे जाते हैं, वे अल्पजीवी होते हैं, परंतु मानवीय कुप्रवृत्तियों पर एवं कुप्रथाओं पर लिखे गए व्यंग्य कालजयी होते हैं। श्री एस डी श्रीवास्तव के व्यंग्यों में पर्याप्त पैनापन है, जो पाठक को चमत्कृत करता है।
श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ने कहा कि शारदा दयाल श्रीवास्तव का लेखन उनके सरल, विद्रोही और अनुभवी व्यक्तित्व का ऐसा दर्पण जो पाठकों से सीधा संवाद स्थापित करता है। उनकी शैली में व्यक्तिगत अनुभवों की सच्चाई झलकती है। इन्होंने बैंक कर्मचारियों के शोषण, नौकरशाही की जड़ता और सामाजिक पाखंड पर प्रहार किया।
श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी द्वारा ज्ञानगंगा में गधों का आचमन की पुस्तक समीक्षा पढ़ने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 180 ☆ “ज्ञान गंगा में गधों का आचमन” – व्यंग्यकार… श्री शारदा दयाल श्रीवास्तव ☆ चर्चा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’☆
श्री मंगत राम गुप्ता ने शारदा दयाल श्रीवास्तव के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इनके शान्त व्यक्तित्व में एक चिंतनशील बेचैन व्यक्ति छुपा है। जिससे इनके भीतर भीतर से चुटीलापन प्रकट होता है।
दुष्यंत संग्रहालय के संयुक्त सचिव और कार्यक्रम संयोजक श्री सुरेश पटवा ने जानकारी दी है कि सरस संचालन श्रीमती जया केतकी शर्मा ने किया और सरस्वती वंदना सुश्री सुनीता शर्मा ने प्रस्तुत की।
साभार – श्री सुरेश पटवा
कार्यक्रम संयोजक / संयुक्त सचिव
दुष्यंत संग्रहालय भोपाल
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈