प्रा लछमन हर्दवाणी

(ई-अभिव्यक्ति में प्रा लछमन हर्दवाणी जी का हार्दिक स्वागत है। 3 मई 1942 को जन्मे प्रा लछमन हर्दवाणी जी ने अल्पायु में विभाजन की विभीषिका और उससे जुड़ी पीड़ा को अनुभव किया है। आपका समाज में एक बहुआयामी एवं ओजस्वी व्यक्तित्व के रूप में सम्माननीय स्थान है। सिंधी साहित्य में आपका महत्वपूर्ण योगदान है। मराठी साहित्य के ज्ञाता होने के साथ ही आप एक बहुभाषी अनुवादक भी हैं। आपके मराठी, हिन्दी एवं सिंधी भाषा में अनुवादित साहित्य का अपना विशिष्ट  स्थान है। हाल ही में आपकी 100वीं पुस्तक प्रकाशित हुई है।

आज प्रस्तुत है श्री संजय भरद्वाज जी की हिंदी कविता “साथ-साथ का प्रा लछमन हर्दवाणी जी द्वारा सिंधी भावानुवाद।)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना 

? साथ-साथ  ??

चलो कहीं

साथ मिल बैठें,

न कोई शब्द बुनें,

न कोई शब्द गुनें,

बस खामोशी कहें,

बस खामोशी सुनें…!

© संजय भारद्वाज

सुबह 9:43 बजे, 25.08.22
प्रा लछमन हर्दवाणी जी द्वारा सिंधी भावानुवाद   
? साणु-साणु… ??
हलु त हलूं किथे

साणु मिली विहूं

न कोई शब्दु सोचूं

बस् खामोशी चऊं

खामोशी बुधूं …!

© प्रा लछमन हर्दवाणी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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