डॉ. दुर्गा सिन्हा ‘उदार‘

☆ ‘ग़ज़ल – आसमान बन सकूँ’ ☆ डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘उदार‘ ☆

बेघर के लिए छत और मकान बन सकूँ

दिल चाहता है मैं भी, आसमान बन सकूँ ।।

*

बरसाऊँ नेह इतना, बादल में छुप के मैं

बस प्रेम-प्यार की मैं, दास्तान बन सकूँ।।

*

जुगनू सी चमक से करूँ, हर घर में मैं उजाला

ग़म की न रहे रात,बस विहान बन सकूँ।।

*

जीने की ख़्वाहिशों के,मैं रंग भरूँ इतने

पलकों में ख़्वाब, ख़ुशियों का जहान बन सकूँ।।

*

मुस्कान हो हर लब पर, अरमान यही है

है जुस्तजू कि,जश्न का सामान बन सकूँ।।

*

हर हाल में बेहाल, आज ज़िन्दगी यहाँ

क्या लिक्खूं कि,हर लब की मुस्कान बन सकूँ।।

*

हमने ‘उदार ‘ रह कर, सबको गले लगाया

सबके दिलों में, प्रेम की पहचान बन सकूँ।।

© डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘उदार‘

कैलीफ़ॉर्नियां, अमेरिका

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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