नर्मदा परिक्रमा:ग्वारीघाट से सर्रा घाट – 1

प्रस्तुत है सफरनामा – श्री सुरेश पटवा जी की खोजी कलम से

(इस श्रंखला में आप पाएंगे श्री पटवा जी की ही शैली में पवित्र नदी नर्मदा जी से जुड़ी हुई अनेक प्राकृतिक, ऐतिहासिक और पौराणिक रोचक जानकारियाँ जिनसे आप संभवतः अनभिज्ञ  हैं।)

नर्मदा अमरकण्टक से निकलकर डिंडोरी-मंडला से आगे बढ़कर पहाड़ों को छोड़कर दो पर्वत श्रंखलाओं, दक्षिण में सतपुड़ा और उत्तर में कैमोर से आते हुए विंध्य के पहाड़ों से समानांतर दस से पंद्रह किलोमीटर की दूरी बनाकर अरब सागर की तरफ़ कहीं उछलती-कूदती, कहीं गांभीर्यता लिए हुए, कहीं पसर के और कहीं-कहीं सिकुड़ कर बहती है। उसके अलौकिक सौंदर्य और उसके किनारे स्निग्ध जीवन के स्पंदन की अनुभूति के लिए पैदल यात्रा पर निकल रहे हैं।

कुछ लोगों ने इस यात्रा पर चलने की इच्छा जताई थी। यह यात्रा वानप्रस्थ के द्वारा सभ्रांत मोह से मुक्ति का अभ्यास भी है। जिस नश्वर संसार को एक दिन अचानक छोड़ना है क्यों न उस मोह को धीरे-धीरे प्रकृति के बीच छोड़ना सीख लें और नर्मदा के तटों पर बिखरे अद्भुत जीवन सौंदर्य का अवलोकन भी करें।

इच्छुक मित्र ग्वारीघाट पहुँचें। दो से तीन बजे पैदल यात्रा गुरुद्वारा की ओर से आरम्भ होगी। प्रतिदिन अनुमानित 10 किलोमीटर पैदल चलना होगा। एक जींस या पैंट के साथ फ़ुल बाहों की शर्ट पहन कर चलें। एक पेंट और तीन-चार शर्ट, एक जोड़ी पजामा कुर्ता, एक शाल, एक चादर, तौलिया, अन्तर्वस्त्र और साबुन तेल के अलावा कोई अन्य सामान न रखें। बैग पीछे टाँगने वाला हल्का हो।

वैसे तो आश्रम और धर्मशालाओं में भोजन की व्यवस्था हो जाती है फिर भी रास्ते में ज़रूरत के लिए समुचित मात्रा में खजूर, भुनी मूँगफली, भुना चना और ड्राई फ़्रूट रखें। पानी की बोतल और एक स्टील लोटा के साथ एक छोटा चाक़ू भी रखें। कहीं कुछ न मिले तो परिक्रमा वासियों का मूलमंत्र  “करतल भिक्षु-तरुतल वास” भी आज़माना जीवन का एक विलक्षण अनुभव होगा।

जो लोग पूरी यात्रा नहीं चल सकते वे अगले दिन भेड़ाघाट से वापस लौट सकते हैं। तिथिवार भ्रमण निम्न अनुसार है। रात्रि विश्राम की जगह ऐसी चुनी गई हैं जहाँ धर्मशाला और भंडारा भोजन उपलब्ध होगा।

13 अक्टूबर ग्वारीघाट -रामनगर 11 किलोमीटर
14 अक्टूबर रामनगर-भेड़ाघाट 10 किलोमीटर
15 अक्टूबर भेड़ाघाट-रामघाट 09 किलोमीटर
16 अक्टूबर रामघाट-जलहरी 08 किलोमीटर
17 अक्टूबर जलहरी-झाँसीघाट 09 किलोमीटर
18 अक्टूबर झाँसीघाट-सर्राघाट 13 किलोमीटर

कुल 60 किलोमीटर की छः दिन में यात्रा याने प्रतिदिन 10 किलोमीटर चलना होगा। यह कोई कठिन काम नहीं है। हर छः माह में आगे की यात्रा सम्पन्न करने का ध्येय है।

पृथ्वी अग्नि जल वायु आकाश का पूरा खुलापन, पेट भर भोजन और तन पर कपड़े के अलावा कोई अन्य कामना नहीं। मानव क़दम दर क़दम नंगे पाँव सदियों से नर्मदा को दाहिनी ओर से लेकर 1312 किलोमीटर उत्तरी तट से और उतना ही दक्षिणी तट से चले जा रहे हैं। चले जा रहे हैं। अनवरत काल से अनवरत खोज में अनवरत यात्रा के अनगिनत पड़ाव।

पगडंडी, गड़वाट, खेत-रेत, घास-झाड़ी, पहाड़-पानी, जीव-जंतु, पशु-मवेशी और इन सबसे बनी बाँसुरी के सप्त सुरों से निकलती कर्णप्रिय लहरियाँ। कहाँ ऐसे निश्छल लोग और कहाँ ऐसी बहुरियाँ। हिरणियों की कुलाँचे, बंदरों की अंडाडावरी, कोयल की कूक और कौए की कांव।  ढोलक की थाप और टिमकी की टिकटिकी के साथ नृत्य की पदचाप और रंगबिरंगी साड़ियों में लहराते साये।

शहरों के आलीशान घरों की बैठक में पहलू और चैनल बदलते थुलथुल देह, मन और धन के बीमार लोग जो न जी पा रहे हैं और न डॉक्टर उन्हें मरने दे रहे हैं। सब एक दूसरे के धन पर घात लगाए चीते की तरह झुके हुए बैठे हैं।

चलो निकल चलो इनसे दूर जहाँ न कारों की रेलमपेल है न रिश्तेदारों की खोजती निगाहें। कुछ दिन तो जी लो जी भरकर निसर्ग के साये में। जिस प्रकृति से तुम आए हो जिसमें तुम्हें अंततः जाना है क्या उसे तुम्हें नहीं पहचानना है।

क्रमशः …..

© श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।)

Please share your Post !

Shares
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments