सुश्री ऋतु गुप्ता

भविष्य से खिलवाड़

(प्रस्तुत है सुश्री ऋतु गुप्ता जी की  एक विचारणीय लघुकथा। आपके लेख ,कहानी व कविताएँ विभिन्न समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं।दैनिक ट्रिब्यून में जनसंसद में आपको लेख लिखने के लिए कई बार प्रथम पुरस्कार मिला है। आपका एक काव्य संग्रह ‘आईना’ प्रकाशित हो चुका है। )

टॉल टैक्स पर जैसे ही ट्रेफिक रूका अनगिनत बच्चे कोई  टिश्यू पेपरस,कोई गाड़ी विंडोज के लिए ब्लेक जालियां, कुछ गुलाब के फूल बेचने वाले आ खड़े हुए ,उनमें कुछ बच्चे ऐसे ही भीख मांग रहे थे ;लेकिन इक बच्चा ऐसा भी था जो मिट्टी के तवे बेच रहा था। चुपचाप हर गाड़ी के पास जाकर तवे लेकर चुपचाप खड़े हो जाता। कुछ लोग उन सबको भगा रहे थे।कछ भाव ही नहीं दे रहे थे।

ज्यादातर बच्चे जिद करके समान बेचने की कोशिश कर रहे थे। भीख मांगने वाले बच्चों ने तो परेशान करके रख दिया था।लेकिन तवा बेचने वाला बच्चा चुपचाप हर गाड़ी के पास एक क्षण तवा खरीदने को कहता ,नहीं अपेक्षित जवाब मिलने पर आगे बढ जाता। तभी गाडिय़ों की कतार में खड़ी गाड़ी में से किसी नौजवान ने शीशा उतार इशारे से उसे अपने पास बुलाया। और बगैर तवा खरीदे उसे दस का नोट थमा दिया।

उसने कई बच्चों को ऐसे ही दस के नोट पकड़ा दिये। आज के जमाने में उसकी दयालुता देख एकबारगी खुशी हुई, लेकिन तुरंत उन मासूम बच्चों के भविष्य की चिंता सताने लगी। लगने लगा कि वास्तव में इनकी इतनी मजबूरी है या फिर इनके माँ-बाप को आदत हो गई है। कटोरा लेकर ऐसे खड़ा कर देते हैं ,इनको काम करने की आदत कैसे पड़ेगी। हममे से कई दयालु लोग उनको भीख देकर उनका भविष्य और अधिक असुरक्षित कर रहें है। अगर हम सब मन को थोड़ा कठोर कर उन्हें भीख की बजाए उन्हें पढ़ाने की ठान ले,अच्छे विचारों से उनका मनोबल उंचा करे ताकि वे अपने पैरों पर खड़ा होना सीखें।हम पैसों से नहीं वरन् सही मार्गदर्शक बन उनकी मदद करें।जो विकलांग हैं उनकी उनके हिसाब से अपेक्षित मदद करे।

अभी सोच विचार में ही थी कि तवा बेचने वाला बच्चा मेरी गाड़ी के पास आकर बोलने लगा,”दीदी तवा खरीद लो,मेरी मदद हो जायेगी।”एक बार मेरा मन भी किया और  पर कठोरता बरत बोला कि नहीं मुझे जरूरत नहीं है।कुछ और बोल पाती उससे पहले टॉल टैक्स पर मेरा नंबर आगया था।
ऋतु गुप्ता
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दीपक खेर

सही सीख
मार्मिक रचना के लिए बधाई एवं ढेर सारी शुभकामनाएं