श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 132 ☆ देश-परदेश – Neighbours Envy ☆ श्री राकेश कुमार ☆
“दोस्त बदल सकते है लेकिन पड़ोसी नहीं” जैसे भी हैं, निभाना ही पड़ेगा। पड़ोसी धर्म जैसे सुविचार अब इतिहास बन चुका है। नैतिकता जैसे शब्द तो अब डिक्शनरी से हटाए जाने की चर्चा चल रही है।
पड़ोसी से विवाद का पहला चरण होता है, स्वतन्त्र घरों के सीमांकन को लेकर। प्रत्येक व्यक्ति समझता है, कि उसके पड़ोसी ने उसकी कुछ जमीन पर अनधिकृत कब्जा कर रखा हैं। कॉमन दीवार झगड़े की जड़ का काम करती है। दोनों को कॉमन दीवार से ज़मीन तो बचती ही है, साथ ही साथ खर्च भी सांझा हो जाता है। झगड़ा करने का कोई तो कारण होना ही चाहिए।
जो व्यक्ति पहले से रह रहा होता है, वो नए पड़ोसी पर आरंभ से ही हावी होने की तैयारी करने लगता है। सरकारी पानी को लेकर बूस्टर का उपयोग करना दूसरा बड़ा कारण है, विवाद के लिए।
बिजली की तार का यदि सांझा खंभा है, तो फिर क्या कहने, एक दूसरे के बिल में तांका झांकी शुरू हो जाती है। दोनों एक दूसरे को बिजली का बिल अधिक आने के लिए दोषी मानते है। ये नहीं पता दोनो परिवार ए सी का उपयोग चौबीस घंटे करते रहते हैं।
सामने की तरफ का खुला एरिया जिसमें गार्डन या गमले रखे जाते हैं, हवा चलने पर पत्ते आदि उड़ने पर भी कोहराम मचता ही है।
सूर्य देवता का प्रकाश प्रतिदिन समय और थोड़ी सी दिशा में भी परिवर्तन के लिए पड़ोसी की दीवार, खिड़की आदि को बलि का बकरा बना दिया जाना एक आम बात हैं।
आप भी अपनी पुरानी रंजिशों/विवादों को याद करें, और मुस्कराए। हम तो आज अपने पड़ोसी के पुत्र के विवाह में जाने की तैयारी में हैं। कल फिर पड़ोस पर भी चर्चा करेंगे।
© श्री राकेश कुमार
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