स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – रेखाएँ मिटा दो !।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 204 – रेखाएँ मिटा दो !… ✍

मिटा दो

रेखाएँ मिटा दो।

जमीन, आसमान या

समुंदर की सतह पर

खींची गई रेखाएँ

मिटा दो।

जमीन सबकी है।

आसमान सबका है। 

समुंदर सबका है।

और रेखाएँ?

वे किसी की नहीं हैं,

मगर सब कहीं हैं।

 

और –

रेखाओं के पार जो है

वो आसानी से

नहीं लिया जा सकता,

इसलिए

रेखाएँ खींचने का ‘श्रेय’

किसी को नहीं दिया जा सकता।

 

जरा सोचिए –

कृपणता के परिवेश में

क्या हो सकता है?

क्या आदमी

अपनी परछाईं धो सकता है?

 

मैं जानता हूँ

दुनिया नकारेगी,

वो यहीं हारेगी।

 

रेखाएँ विस्तार पा रही हैं,

वे गहरा रही हैं।

और आदमी

दिन ब दिन

छोटा होता जा रहा है।

सोचता हूँ-

ये क्या होता जा रहा है।

 

अरे, कोई है

जो रोक दे इस मनमानी को,

आखिर कोई कब तक बाँधेगा

हवा, धूप, पानी को!

इसीलिए काहता हूँ

जमीन, आसमान या

समुंदर कि सतह

पर खींची गई

रेखाएँ मिटा दो।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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