श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – एकाकार ?

तुम कहते हो शब्द,

सार्थक समुच्चय

होने लगता है वर्णबद्ध,

तुम कहते हो अर्थ,

दिखने लगता है

शब्दों के पार भावार्थ,

कैसे जगा देते हो विश्वास?

जादू की कौन सी

छड़ी है तुम्हारे पास ?

सरल सूत्र कहता हूँ,

पहले जियो अर्थ

तब रचो शब्द,

न छड़ी, न जादू का भास,

बिम्ब-प्रतिबिम्ब एक-सा विन्यास,

मन के दर्पण का विस्तार है,

भीतर बाहर एक-सा संसार है!

©  संजय भारद्वाज

रात्रि 12.13 बजे, 22.9.19

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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माया कटारा

भीतर-बाहर एक -सा संसार है -एकाकार की अनुपम कल्पना , जादू की छड़ी
शब्द और भाव एकीकृत होकर रचना का रूप लेते हैं । शब्द – मंथन एवं भाव जगत का एकाकार है आपका सृजन – रचनाकार की इस सृजनशीलता को नमन

अलका अग्रवाल

सही है पहले जियो अर्थ तब रचो शब्द। तभी तो आपकी रचनायें मन के दर्पण का विस्तार लगती हैं।अप्रतिम।